रोग प्रबंधन
आक्रमण / लक्षण |
नियंत्रण |
अगेता झुलसा: पत्तों पर गोल चक्र रूप में भूरे धब्बे बनते हैं जिसके कारण अधिक बिमारी होने पर पत्ते शीघ्र गिर जाते हैं। |
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पछेता झुलसा: छोटे काले धब्बे पत्तों पर आते हैं जो बढ़ते जाते है और कुछ दिनों में सारे पौधों को मार देते हैं। यदि बारिशें लगातार होती रहें तो उपज में बहुत कमी आ जाती है। |
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फोमा झुलसा: इसके प्रथम लक्षण पत्तों पर छोटे, गोल बिंदुओ की तरह धब्बे बनते हैं। बिमारी वाले भाग के चारों और पीलापन बनता है और उसके बाद भूरे से गहरे भूरे धारियों वाले गोल धब्बे बनते हैं। |
पछेता व अगेता झुलसा बिमारियों की तरह। |
कामॅन स्कैब: रोग ग्रस्त आलुओं का छिलका भद्दा हो जाता है और उसमें गहरे छेद पड़ जाते हैं। आलुओं पर भूरे से काले कार्क की तरह धब्बे बन जाते हैं। |
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ब्लैक स्कर्फ: आलुओं से उगती हुई शाखाएं मर जाती हैं। भूमि के अंदर वाले भागों में कैंकर जैसी बढ़ौतरी बनती है और आलुओं पर भूरे काले बिमारी के अंश प्रकट होते हैं। |
बीज के आलुओं को बोरिक एसिड (फार्मास्यूटिकल ग्रेड) (3%) के घोल में 30 मिनट के लिए या एगालॉल (0.5%) के घोल में 30 मिनट या एसिटिक एसिड (1%, जिन्क सल्फेट 0.05%) के घोल में 15 मिनट के लिए उपचार करें। इन घोलों को आलुओं के उपचार के लिए 20 बार प्रयोग में लाया जा सकता है। |
पाऊडरी स्कैब: आरंभ में आलुओं पर उभरी हुई कीलें प्रकट होती हैं। बाद में गड्ढे / छेद बन जाते हैं जिनके अंदर फफूंद भर जाती है जो पतले छिलके से घिरे रहते है। |
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बैक्टीरियल विल्ट: इस बिमारी के प्रमुख लक्षण पौधों व पत्तों का मुरझा कर नीचे झुकना है जिससे बाद में पूरा पौधा मुरझा जाता है और आलुओं के अंदर भूरापन आ जाता है। |
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विषाणु रोग (पी.वी.वाई.): पत्तों के हरे रंग के बीच हल्के भूरे रंग के धब्बे बनते हैं। प्रायः पत्तों पर हल्के निर्जीव धब्बे प्रकट होते हैं। पौधे छोटे रह जाते हैं। |
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