स्थानीय नामः कंगनी / कौनी
प्रमुख खेती वाले क्षेत्रः सिरमौर, बिलासपुर, सोलन, शिमला, मंडी, कांगड़ा, हमीरपुर, ऊना, कुल्लू और चंबा
फॉक्सटेल (Setaria Italica) को कंगनी, कौनी के रूप में जाना जाता है। यह विश्व में सबसे पुराने खेती किए जाने वाले मोटे अनाजों में से एक है। कंगनी को भारत में प्राचीन काल से उगाया जाता रहा है।
हिमाचल प्रदेश में यह फसल बड़े पैमाने पर कांगड़ा जिला में उगाई जाती है। अन्य मोटे अनाजों की अपेक्षा इसके बीज बहुत छोटे होते हैं। मानव भोजन के लिए इसे चावल की तरह उबाल कर खाया जाता है। मुर्गीपालन के व्यवसाय में इसका उपयोग पक्षियों को खिलाने के लिए किया जाता है।



कंगनी की खेती
मिट्टी
कंगनी की खेती अच्छी जल निकासी वाली, मध्यम उपजाऊ, रेतीली से लेकर भारी चिकनी मिट्टी में की जा सकती है। यह फसल अत्यधिक ठंड और गंभीर सूखे की स्थिति को सहन नहीं करती है।
जलवायु
इसे उष्ण कटिबंधीय और समशीतोष्ण क्षेत्रों में 2000 मीटर तक की ऊंचाई और 50-75 से.मी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है।
बीज एवं बुआई का समय
● यह एक गर्म मौसम की फसल है तथा इसकी बिजाई आमतौर पर बसंत ऋतु में की जाती है।
● बिजाई की दूरी 20-25 से.मी. (पंक्ति से पंक्ति) और 8-10 से. मी. (पौधे से पौधे) है। बीज को 2-3 सेंटीमीटर की गहराई में बोना चाहिए।
● बीज दर 10-12 कि.ग्रा./हैक्टेयर लाइन बुवाई के लिए और 15 कि.ग्रा/हैक्टेयर छट्टा विधि के लिए उपयुक्त है।
खाद एवं उर्वरक
● भूमि की तैयारी के समय गोबर की खाद 8-10 टन/हैक्टेयर की दर से डालें। अनुमोदित उर्वरकों की मात्रा 40:20:20 कि. ग्रा. एन पी के /हैक्टेयर है।
● पोटाश, फास्फोरस की पूरी मात्रा एवं नत्रजन की आधी मात्रा बिजाई के समय तथा नत्रजन की आधी बाकी मात्रा बुवाई के 30 दिन बाद डालें।
खरपतवार नियंत्रण
फसल की अच्छी बढ़ौतरी व खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई व गुडाई की संतुति की जाती है। अधिक खरपतवारों के प्रकोप से फसल की उपज में कमी आ जाती है।
सिंचाई
बारानी फसल के रूप में बोए जाने वाली कंगनी को सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है। परन्तु अत्यधिक सूखे मौसम की स्थिति में यदि सिंचाई उपलब्ध है तो बुवाई के 25-30 दिन बाद पहली सिंचाई और दूसरी बुवाई के 40-45 दिन बाद की सिफारिश की जाती है।
फसल कटाई
हरे चारे या चारे का अचार (साइलेज) बनाने के लिए फसल की कटाई 65-70 दिनों के बाद की जानी चाहिए। यह फसल 15-20 टन प्रति हैक्टेयर हरा चारा प्रदान करती है। दानों के लिए फसल 75-90 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। अनाज की प्रति हैक्टेयर 8-9 क्विंटल की सामान्य उपज प्राप्त होती है।
पौष्टिक गुण
इसका उपयोग गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं, बीमार लोगों और बच्चों के लिए ऊर्जा स्त्रोत के रूप में किया जाता है। कंगनी के बीजों में 10 से 12 प्रतिशत प्रोटीन, 4.3 प्रतिशत वसा, 60 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट और 2.29 प्रतिशत लाइसिन होता है। यह मधुमेह के रोगियों के लिए एक उत्तम आहार है तथा फाइबर, खनिजों, सूक्ष्म पोषक तत्वों, एवं प्रोटीन से भरपूर है और इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स (जीआई) कम है।
पौष्टिक तत्वों की मात्रा
पोषक तत्व |
पोषण मूल्य प्रति 100 ग्राम |
कार्बोहाइड्रेट | 60.1 ग्राम |
प्रोटीन | 12.3 ग्राम |
वसा | 4.30 ग्राम |
ऊर्जा | 331 किलो कैलोरी |
फाइबर | 6.7 ग्राम |
कैल्शियम | 31.0 मिलीग्राम |
फास्फोरस | 188 मिलीग्राम |
मैग्नीशियम | 81 मिलीग्राम |
जिंक | 2.4 मिलीग्राम |
आयरन | 2.8 मिलीग्राम |
थियामिन | 0.59 मिलीग्राम |
नियासिन | 3.2 मिलीग्राम |
फोलिक एसिड | 15.0 माइक्रोग्राम |
स्वास्थ्य लाभ
कंगनी के स्वास्थ्य लाभ:-
- स्वस्थ्य हृदय कार्यप्रणाली में सहायक
कंगनी में विटामिन बी 12 होता है जो न्यूरोट्रांसमीटर एसिटाइलकोलीन के निर्माण में मदद करता है। यह रक्तचाप को नियंत्रित करने में मदद करता है, जिससे हृदय में रूकावट की संभावना कम हो जाती है।
- तंत्रिका तंत्र के सुचारू कामकाज में
प्रोटीन की अच्छी मात्रा तंत्रिका तंत्र के समुचित कार्य में मदद करता है।
- वजन घटाने में सहायक
कंगनी में फाइबर की उपस्थिति वजन नियंत्रण में मदद करती है। इसमें ट्रिप्टोफैन भी होता है जो धीमे पाचन के लिए जिम्मेदार होता है और अतिरिक्त कैलोरी का सेवन करने से रोकता है।
- मधुमेह नियंत्रिण में सहायक
इसमें कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स (जीआई) होता है जो गेहूं और चावल की तुलना में शरीर में रक्त शर्करा को धीरे-धीरे बढ़ाता है। कंगनी, मधुमेह रोगियों के लिए यह अच्छा भोजन है।
- हड्डियों को मजबूत बनाए रखने में योगदान
कंगनी में मौजूद कैल्शियम कमजोर हड्डियों, सूजन, ऑस्टियोपोरोसिस, गठिया और स्पॉन्डिलाइटिस से निपटने में मदद करता है। कंगनी में मौजूद आयरन और कैल्शियम हड्डियों और मांसपेशियों के स्वास्थ्य को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली की मजबूती में सहायक
विटामिन और खनिज शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं। कंगनी लेसिथिन और मेथिओनाइन सहित अन्य अमीनो एसिड का अच्छा स्त्रोत होता है जो लिवर में अतिरिक्त वसा को कम करके कोलेस्ट्रॉल को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। औषधीय रूप से इसे मूत्रवर्धक के रूप में कार्य करने के लिए जाना जाता है और कभी-कभी गठिया के उपचार के लिऐ उपयोग किया जाता है।
- मस्तिष्क के विकास में इसमें मौजूद आयरन मस्तिष्क ऑक्सीजन के लिए आवश्यक है और अल्जाइमर रोग से बचाव में सहायता करता है।
उपयोगिता
- कंगनी को चावल के रूप में पकाया जाता है और विशेष रूप से धार्मिक अवसरों या उपवासों पर इसका सेवन किया जा सकता है।
- इसका उपयोग बुखार, सिरदर्द, चिकन पॉक्स आदि को ठीक करने के लिए भी किया जाता है।
- पौधों के अवशेषों को चारे के रूप में उपयोग किया जाता है।
- अन्य व्यंजनों में कंगनी की खीर, कंगनी कटलेट, कंगनी नारियल चावल, कंगनी वाली सब्जी बिरयानी या चिकेन बिरयानी, कंगनी ब्रेड इत्यादि शामिल हैं।
कंगनी के मूल्यवर्धित उत्पाद
कंगनी की खीर
सामग्री | मात्रा | विधि |
कंगनी के दाने | 1 कप |
|
सूखे मेवे | आवश्यकता अनुसार | |
घी | ||
पानी | ||
चीनी | ||
दूध | ||
इलायची पाउडर |
कंगनी कटलेट
सामग्री | मात्रा | विधि |
छिलके वाली कंगनी | 100 ग्राम |
|
आलू | 20 ग्राम | |
गाजर | 20 ग्राम | |
नमक | 2 ग्राम | |
मिर्च | 5 ग्राम | |
चाट मसाला | 5 ग्राम | |
ब्रेडक्रम्ब्स | 20 ग्राम | |
हरी मिर्च | 5 ग्राम | |
तलने के लिए तेल | आवश्यकता अनुसार |
कंगनी की पाव रोटी
सामग्री | मात्रा | विधि |
कंगनी का आटा | कप |
|
मैदा | 1 कप | |
दूध | 15 मिली लीटर | |
नमक | 1 ग्राम | |
खमीर | 2 ग्राम | |
चीनी | 5 ग्राम | |
पानी | 30 मिली लीटर | |
अंडा | 1 | |
तेल ग्रीसिंग के लिए | आवश्यकता अनुसार |