जुताई व बिजाई
i. भूमि की तैयारी
अच्छे निकास वाली, उपजाऊ दोमट मिटटी आलू की फसल के लिए सबसे उत्तम है यद्यपि अच्छे प्रबंध द्वारा इसे विभिन्न प्रकार की भूमियों में भी उगाया जा सकता है। एक गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और 2-3 जुताईयां देसी हल से करनी चाहिए ताकि आलू की फसल के लिए अच्छे खेत बन सकें। खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए। खेत समतल होना चाहिए ताकि जल निकासी सही हो सके।
ii. बीज
बिजाई के लिए अच्छे बीज की निम्नलिखित विशेषताएं होनी चाहिए:
• बीज शुद्ध प्रजाति का होना चाहिए।
• बीज स्वस्थ, रोग रहित, विषाणु, सूत्रकृमि तथा बैक्टीरिया से मुक्त होना चाहिए।
• बीज अंकुरण की सही अवस्था में होना चाहिए।
कन्द के आकार के अनुसार इसे समूचे तथा छोटे टुकड़ों में काटकर बोया जा सकता है। यदि कन्द का आकार बड़ा हो तो इस प्रकार काटें कि प्रत्येक टुकड़े में कम से कम दो आंखे हों और प्रत्येक टुकड़े का भार 30 ग्राम से कम न हो। कटे हुए टुकड़ों को डाईथेन एम-45 / इंडोफिल एम-45 (0.25%) के घोल से उपचार करने से अच्छी फसल व उपज प्राप्त होती है।
iii. बिजाई का ढंग
आलू को 50-60 सें. मी. की दूरी में नालियों/खालियों में ढलान की विपरीत दिशा में बोना चाहिए तथा बिजाई के तुरन्त बाद मेंढ़ें बनानी चाहिए। कन्द से कन्द का अंतर 15-20 सें.मी. होना चाहिए। यदि बीज के आलुओं का भार 30 ग्राम से कम न हो तो 20-25 क्विंटल / हैक्टेयर बीज पर्याप्त होगा।
iv. बिजाई का समय
अच्छी पैदावार लेने के लिए गेहूँ की बिजाई सही समय पर करनी चाहिए। प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में बिजाई का समय निम्नलिखित है:
क्षेत्र |
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| निचले पर्वतीय क्षेत्र: | |
| 1. पतझड़ वाली फसल | मध्य सितंबर – मध्य अक्तूबर |
| 2. बसंत वाली फसल | जनवरी – फरवरी |
| मध्यवर्ती पर्वतीय क्षेत्र (800-1600 मी.) | मध्य जनवरी |
| ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र (1600-2400 मी.) | मार्च – अप्रैल |
| बहुत ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र (2400 मी. से अधिक) | अप्रैल – मई शुरू |



