भिंडी हिमाचल प्रदेश के निचले एवं मध्यवर्ती क्षेत्रों की एक प्रमुख फसल है।
निचले क्षेत्रों में इसकी खेती बसन्त ग्रीष्म तथा बरसात पतझड़ ऋतु में की जाती है। जबकि मध्यवर्ती क्षेत्रों में इसे अप्रैल से अक्तूबर तक उगाया जाता है।
बसन्त ग्रीष्म व बरसात-पतझड़ ऋतु में किसान इस फसल से काफी लाभ कमाते हैं।
भिंडी की खेती
निवेश सामग्री :
प्रति हैक्टेयर | प्रति बीघा | प्रति कनाल | |
बीज (कि. ग्रा.) ग्रीष्म ऋतु | 15-20 | 1.5 | 0.7 |
बीज (कि. ग्रा.) वर्षा ऋतु | 10-12 | 1 | 0.5 |
गोबर की खाद (क्विंटल) | 100 | 8 | 4 |
विधि-1 | |||
यूरिया (कि. ग्रा.) | 160 | 12.8 | 6.4 |
सुपरफॉस्फेट (कि. ग्रा.) | 315 | 25 | 12.5 |
म्यूरेट ऑफ पोटाश (कि. ग्रा.) | 90 | 7 | 3.5 |
विधि-2 | |||
12:32:16 मिश्रित खाद (कि. ग्रा.) | 156 | 12.5 | 6.3 |
म्यूरेट ऑफ पोटाश (कि. ग्रा.) | 50 | 4 | 2 |
यूरिया (कि. ग्रा.) | 123 | 9.8 | 4.9 |
खरपतवार नियंत्रण | |||
बैसालीन (बिजाई से पहले) | 2.5 ली. | 200 मि.ली. | 100 मि.ली. |
या लासो (बिजाई से तुरन्त बाद) | 4 ली. | 320 मि.ली. | 160 मि.ली. |
अनुमोदित किस्में
किस्में |
विशेषताएँ |
पालम कोमल | नई किस्म, इस किस्म के फल अपेक्षाकृत जल्दी बढ़ते हैं और चिकने, नर्म, 5 किनारों वाले व कई दिनों तक मुलायम रहते हैं। इसकी औसत उपज 215 क्विंटल प्रति हैक्टेयर हे जो कि अनुतोदित किस्म ‘पी-8’ व संकर किस्म ‘तुलसी’ से अधिक है। यह किस्म येलो वेन मौजेक रोग से प्रभावित नहीं होती तथा निचले व मध्यम पर्वतीय क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। |
पी-8 | नई किस्म, पौधे मध्यम ऊंचाई वाले (53-71 सैं. मी. ऊंचे) और फल 12-15 सें. मी. लम्बे, लगभग 10 फल प्रति पौधा, येलो वेन मौजेक बीमारी के लिए प्रतिरोधी। औसत उपज 107 क्विंटल प्रति हैक्टेयर। |
सस्य कियाएं
भिण्डी की खेती के लिए दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है जिसमें पानी के निकास का उचित प्रबन्ध हो। खेत में 2-3 जुताईयां देसी हल से करनी आवश्यक होती हैं। खेत की मिट्टी के ढलान तथा सिंचाई की सुविधनुसार उथली क्यारियां बना दें जिससे वर्षा के होने पर पानी निकास की उचित व्यवस्था हो सके। ग्रीष्म ऋतु की फसल के बीजों को बोने से पहले पानी में 24 घण्टे तक भिगो लेना चाहिए तथा दूरी कम रखनी चाहिए।
बिजाई का समय :
निचले क्षेत्र |
फरवरी-मार्च, जुलाई |
मध्य क्षेत्र |
मार्च-जून |
ऊंचे क्षेत्र |
अप्रैल- मई |
विधि -1 : खेत की तैयारी के समय गोबर की खाद, सुपर फास्फेट व म्यूरेट ऑफ पोटाश की पूरी मात्रा तथा यूरिया की आधी मात्रा बीजाई से पहले भूमि में मिला दें तथा आधी यूरिया की मात्रा दो भागों में एक-एक महीने बाद इस प्रकार टाप ड्रैस करें कि रसायनिक खाद पौधों पर न पडे ।
विधि-2: गोबर की खाद, 12:32:16 मिश्रित खाद व म्यूरेट ऑफ पोटाश की सारी मात्रा खेत तैयार करते समय डालें । यूरिया खाद को दो बराबर हिस्सों में एक निराई-गुड़ाई के समय तथा दूसरी फूल आने के बाद डालें। वर्षा ऋतु में यूरिया (100-150 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) का घोल बनाकर छिड़काव करें इससे नत्रजन की कमी नहीं रहेगी तथा फल व बीज की अधिक उपज होगी।
बीजाई पंक्तियों में 45 से 60 सें. मी. की दूरी पर करें व पौधे से पौधे की दूरी 15 सैं. मी. रखें। बीजाई 1.5 से 2 सैं. मी. की गहराई में नम भूमि में करें। बीज अंकुरण के बाद देखें जहां बीज न उगा हो तो दुबारा बीजाई कर दें तथा जहां बीज घने उगे हों तो ठीक दूरी देकर पौधे निकाल दें।
सिंचाई, निराई व गुड़ाई एवं खरपतवार नियन्त्रणः
बोने के समय यदि नमी की कमी हो तो एक हल्की सिंचाई कर के बिजाई करनी चाहिए। गर्मी की फसल में 4-5 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करना आवश्यक हो जाता है लेकिन वर्षा ऋतु की फसल में सिंचाई वर्षा के जल और खेत की नमी के आधार पर की जाती है। बसन्त एवं गर्मी के मौसम की फसल में दो-तीन निराई-गुड़ाई करनी पर्याप्त होती है लेकिन वर्षा की फसल में निराई-गुड़ाई की आवश्यकता अधिक होती है। वर्षा की फसल में मिट्टी भी चढ़ा देनी चाहिए। भिण्डी के पौधों की सुरक्षा हेतु खरपतवारों के नियन्त्रण के लिए लासो (4 लीटर स.प./ है) का बीजाई के 48 घण्टे के भीतर 750-800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। इस उपचार के बावजूद 60 दिन के बाद खरपतवार निकालना आवश्यक है।
पौध संरक्षण
लक्षण / आक्रमण |
उपचार |
1. बीमारियाँ |
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येलो वेन मोजैक: रोगग्रस्त पत्तों पर धारियां दिखाई देती हैं और फिर पूरा पत्ता पीला पड़ जाता है। |
1. इस रोग की प्रतिरोधी किस्में पी.-8 पालम कोमल, अर्का अनामिका लगाएं। 2. रोगग्रस्त पौधों को नष्ट कर दें 3. मैलाथियान 0.20 प्रतिशत (750 मि.ली. साईथियान / मैलाथियान 50 ई.सी.) 750 लीटर पानी के हिसाब से जेसिड रोग वाहक के नियन्त्रण के लिए प्रति हैक्टेयर छिड़काव करें। 4. प्रभावित फसल को बीज के लिए न रखें। |
2. कीट |
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फली छेदक : कीट की सुंडियां फलियों के पास के स्थान पर पौधे की टहनियां में छेद करती हैं। बाद में फल के अन्दर प्रवेश करके उन्हें हानि पहुँचाती हैं। विकसित हो रहा फल विकृत हो जाता है। प्रकोप की प्रारम्भिक अवस्था में टहनियां झड़ने लगती हैं और पौधे मर जाते हैं। |
लक्षण देखते ही 100 मि.ली. मैलाथियान (साईथियान / मैलाथियान 50 ई.सी.) या 200 ग्राम एमामैक्टिन बैंजोएट 5 एस.जी. को 500 लीटर पानी में घोल कर छिडकाव करें। सावधानीः फसल को छिड़काव करने के बाद 10 दिन तक न तोड़े । |
ब्लिस्टर बीटल : यह कीट फूल के मुख्य भागों पर पलता है जिससे उपज में कमी आ जाती है। |
मैलाथियान 500 मि.ली. (साईथियान / मैलाथियान 50 ई.सी.) को 500 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें। |
जैसिड : कीट पत्तियों के नीचे की सतह से कोशिका का रस चूसते है। पत्ते ऊपर की ओर मुड़ने लगते हैं और पीले होकर गिर जाते है। |
मैलाथियान 50 ई. सी. (500 मि.ली. साईथियान / मैलाथियान) को 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। |
तुड़ाई एवं उपज
मंडी के लिए फल जब ठीक तैयार व मुलायम हों तो तोड़ें। उसके बाद फलों को हर 3-4 दिन में निकाल लेना चाहिए।
औसत उपज 120-150 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होती है।
बीज उत्पादन
भिण्डी के बीजोत्पादन के लिए सस्य कियाएं फल वाली फसल के लिए करते हैं, वही की जाती हैं। इसके अलावा भिण्डी की बीज फसल अन्य प्रजातियों के खेतों से 200 मीटर की दूरी पर होनी चाहिए। अवांछनीय पौधों को कम से कम तीन बार निकालना आवश्यक है। बीजाई के एक महीना बाद फूल आने के पूर्व पत्तियों के आकार, प्रकार और रंग के लक्षणों की जांच करके अवांछनीय (आफ टाईप) पौधों को निकाल देना चाहिए और फूल आने के बाद और फलों के आकार / प्रकार के लक्षणों के आधार पर अवांछनीय पौधों को निकाल दें। पौधों पर लगे प्रथम दो फल तथा आखिरी तीन कच्चे फल निकाल लें तो फसल एक समान पक कर तैयार हो जाती है। भिंडी की फलियां जब पूरी तरह पक जाएं, तो इसमें दरारें पड़ जाती हैं, तो पौधों को काट कर बीज को अलग करने के उपरान्त बीज को सुखा लेना चाहिए।
बीज उपज :
सामान्यतः एक हैक्टेयर खेत से 10-12 क्विटल एवं एक बीघा से 80-100 किलोग्राम बीज प्राप्त होता है।