मसर रबी की दूसरी महत्वपूर्ण दलहनी फसल है। इसे कुछ किसान अपनी घरेलू खपत के लिए उगाते हैं।



मसर की खेती
भूमि:
सभी प्रकार की भूमि जिसमें पानी खड़ा न रहता हो, मसर की खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है।
भूमि की तैयारी:
दो-तीन जुताईयां बिजाई के लिए काफी हैं।
बिजाई का समय:
अक्टूबर के अंत से नवंबर के मध्य तक मसर की बिजाई के लिए उत्तम समय है। यदि सूखा पड़े या बारिश न हो तो दिसंबर के पहले सप्ताह तक इसकी बिजाई की जा सकती है।
बिजाई का ढंग:
फसल को केरा विधि से 25-30 सै.मी. की दूरी पर पंक्तियों में बीजें।
बीज की मात्रा:
सही समय की बिजाई के लिए 25-30 कि. ग्रा. बीज प्रति हैक्टेयर पर्याप्त होता है। पछेती बिजाई के लिए बीज की मात्रा थोड़ी बढ़ा देनी चाहिए जिससे पौधों की संख्या पर्याप्त हो जाए।
जल प्रबन्ध:
चने की तरह मसर की भी सिंचाई के बिना खेती की जाती है परंतु फलियां बनने के समय एक सिंचाई दी जाए तो उपज में बढ़ौतरी हो जाती है।
निराई तथा गुडाई:
खरपतवारों को नियंत्रण करने के लिए एक या दो निराई-गुड़ाई करना लाभदायक है।
अनुमोदित किस्में
किस्में |
विशेषताएँ |
विपाशा (एच.पी.एल.-5) |
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मारकण्डेय (ई.सी.-1) |
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खाद व उर्वरक
तत्व (कि.ग्रा./है.) |
उर्वरक (कि.ग्रा./है.) |
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ना. |
फा. |
पो. |
यूरिया |
एस एस पी |
एम ओ पी |
10 | 40 | — | 22 | 250 | — |
उर्वरक (कि.ग्रा./बीघा) |
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20 | 20 | — |