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agriculture department himachal pradesh logo

Department of Agriculture

Himachal Pradesh

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    Department of Agriculture

      Himachal Pradesh

        स्थानीय नामः रागी, मंडल, मंडुआ, कोदरा, कोदा

        प्रमुख खेती वाले क्षेत्रः सिरमौर, शिमला, कुल्लू, मंडी, सोलन, चंबा, कांगड़ा, लाहौल-स्पीति और किन्नौर

        फिंगर मिलेट (Eleusine Coracana), जिसे रागी, मंडल के रूप में भी जाना जाता है, हिमाचल प्रदश में उगाई जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण मोटे अनाज की फसलों में से एक है। राज्य के कई क्षेत्रों में रागी एक मुख्य भोजन है।

        इस फसल में उत्कृष्ट भंडारण गुण हैं और यह कीटों के प्रकोप के लिए प्रतिरोधी है। इन सब गुणों के कारण इस फसल के अनाज का भण्डारण खाद्यानों की कमी व अकाल जैसे उत्पन्न स्थिति के लिए किया जाता है।

        आम तौर पर रागी की उगाई जाने वाली दो किस्मे है: काले बीज वाली और सफेद बीज वाली, भोजन के लिए सफ़ेद बीज वाली किस्म को प्राथमिकता दी जाती है, लेकिन पशुओं के चारे हेतु दोनों ही किस्मों का प्रयोग किया जा सकता है।

        रागी की खेती

        रागी की फसल को कम निवेश की आवश्यकता होती है। असामान्य परिस्थितिओं के प्रति सहनशीलता की क्षमता के कारण शुष्क भूमि भी खेती के लिए उपयुक्त है।

        जलवायु

        रागी को समुद्र तल से 2000 मीटर से अधिक ऊंचाई के क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है। उचित वृद्धि और विकास के लिए 26-29°C के औसत तापमान की आवश्यकता होती है।

        मिट्टी

        रागी की खेती अच्छी दोमट मिट्टी से लेकर उथली ऊपरी भूमि तक की मिट्टी में की जाती है। इसे उच्च उर्वरता और जल धारण क्षमता वाली अच्छी जल निकासी वाली दोमट और बलुई दोमट मिट्टी में उगाया जा सकता है।

        हिमाचल प्रदेश के लिए अनुमोदित किस्में

        वीएल-117, वीएल-204 और वीएल-115 रागी की कम अवधि वाली अधिक उपज देने वाली किस्में हैं।

        बुआई का समय

        मई के पहले सप्ताह से तीसरे सप्ताह तक का समय बुवाई के लिए उपयुक्त है। बुवाई के लिए अनुमोदित पंक्ति से पंक्ति की दूरी 22-30 से.मी. और पौधे से पौधे की दूरी 8-10 से. मी. है। बीज को 2-3 सेंटीमीटर की गहराई में बोना चाहिए। 4-5 कि ग्रा प्रति हैक्टेयर बीज दर बुवाई के लिए अनुमोदित है। फसल की छटा विधि से भी बिजाई की जा सकती है।

        खाद एवं उर्वरक

        भूमि की तैयारी के समय गोबर की खाद 8-10 टन प्रति हैक्टेयर की दर से डालें। उर्वरक की अनुमोदित मात्रा 40 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20 किलोग्राम फॉस्फोरस और 20 किलोग्राम पोटाशियम प्रति हेक्टेयर हैं। फास्फोरस और पोटाशियम की पूरी मात्रा एवं नाइट्रोजन की आधी मात्रा बिजाई के समय तथा नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के 40-45 दिन बाद डालें।

        खरपतवार नियंत्रण

        फसल में दो निराई की जानी चाहिए। पहली निराई छंटाई के समय और दूसरी निराई जुलाई के मध्य में करने की सलाह दी जाती है।

        सिंचाई

        कम वर्षा वाले क्षेत्रों में अगर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो तो दो बार सिंचाई की सलाह दी जाती है।

        फसल कटाई

        यह फसल सामान रूप से नहीं पकती है इसलिये कटाई दो चरणों में की जानी चाहिए । जब फसल पर 50 प्रतिशत बालियां भूरी हो जाती हैं, तो फसल पहली कटाई के लिए तैयार हो जाती है। पहली कटाई के लगभग सात दिन बाद दूसरी कटाई होती है। फसल को बिना सुखाए एक दिन के लिए छाया में एकत्रित करके ढेर लगा कर रखा जाता है। इसके बाद इस काटी गयी फसल को सुखाया जाता है, कूटा जाता है और बीजों को साफ किया जाता है। यह फसल दाने की औसत पैदावार 10 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तथा चारे की उपज 6-8 क्विटल प्रति हेक्टेयर प्रदान करती है।

        पौष्टिक गुण

        रागी में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फाइबर और खनिज पाए जाते हैं, जो चावल, गेहूं, मक्का और मिलेट जैसे अन्य अनाजों के बराबर या अधिक होता है। इसकी प्रोटीन प्रोफाइल अच्छी तरह से संतुलित है। इसमे कैल्शियम, आयरन, पोटेशियम, मैग्नीशियम और जिंक जैसे खनिजों के अलावा विटामिन बी, विशेष रूप से नियासिन, बी 6 और फोलिक एसिड भी होता है। यह प्राकृतिक आयरन का एक अच्छा स्त्रोत है।

        पौष्टिक तत्वों की मात्रा :

        पोषक तत्व

        पोषण मूल्य प्रति 100 ग्राम

        नमी 10.89 ग्राम
        प्रोटीन 7.16 ग्राम
        वसा 1.92 ग्राम
        फाइबर 11.18 ग्राम
        कार्बोहाइड्रेट 66.82 ग्राम
        पोटेशियम 0.44 मिली ग्राम
        फास्फोरस 0.21 मिली ग्राम
        मैग्नीशियम 0.15 मिली ग्राम
        कैल्शियम 0.36 मिली ग्राम
        आयरन 0.004 मिली ग्राम
        ऊर्जा 1342 किलोजूल
        स्त्रोत: चौ.स.कु. हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर

         

        स्वास्थ्य लाभ
        1. मजबूत हड्डियां और दांत

        रागी में दूध से 3 गुना ज्यादा कैल्शियम होता है। कैल्शियम हड्डियों और दांतों को मजबूत बनाए रखने के लिए जरूरी है। यह बढ़ते बच्चों के साथ-साथ बुजुर्ग लोगों के लिए भी अच्छा है, जिन्हें ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा हो सकता है।

        1. वजन घटाने के लिए

        रागी में बहुत कम प्राकृतिक वसा होती है जो इसे वजन घटाने के लिए उपयुक्त बनाती है। इसमें ट्रिप्टोफैन एमिनो एसिड होता है जो भूख को कम करके हमारे शरीर के वजन को नियंत्रित करने में मदद करता है। रागी की पाचन दर धीमी होती है, यह हमें अपने आहार में अतिरिक्त कैलोरी लेने से दूर रखता है।

        1. मधुमेह को नियंत्रित करना

        यह ब्लड शुगर के स्तर को नियमित करने में सहायता करता है। इसमें कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है जो धीमे पाचन को बढ़ावा देता है और शरीर में ब्लड शुगर के स्तर को बढ़ने से रोकता है।

        1. गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए

        रागी का सेवन चिंता और तनाव से राहत देकर स्वस्थ गर्भावस्था में मदद करते है। रागी के खनिज और पोषक तत्व गर्भावस्था के दौरान मां और बच्चे को पोषण और इम्युनिटी बढ़ाने में सहायता करता है।

        1. अच्छी त्वचा

        यह त्वचा की कांति को बनाए रखने में सहायता करता है और झुर्रियां बनने और ढीलेपन को रोकता है।

        1. स्वस्थ हृदय

        रागी में फाइबर की उपस्थिति कोलेस्ट्रॉल को कम करने में सहायता करती है। लेसिथिन और मेथियोनीन लिवर से अतिरिक्त वसा को हटाते हैं और रक्त में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को स्थिर करते हैं।

        1. हीमोग्लोबिन के स्तर को बनाए रखना

        रागी प्राकृतिक आयरन का एक अच्छा स्त्रोत है जो हीमोग्लोबिन के स्तर पर सकारात्मक प्रभाव लाता है।

        1. पाचन में सुधार

        फाइबर से भरपूर रागी पाचन तंत्र को सेहतमंद रखने में भरपूर सहायता करता है।

        रागी का नियमित सेवन अवसाद, अनिद्रा, माइग्रेन और चिंता की समस्या से निपटने में उपयोगी है।

        उपयोगिता
        1. रागी का उपयोग मुख्यतः रोटी (बिना खमीर वाली ब्रेड या पैनकेक), मुड्डे (पकौड़ी), अंबाली (पतली दलिया), लड्डू, डोसा, कुकीज और माल्ट जैसे पारंपरिक खाद्य पदार्थों की तैयारी के लिए किया जाता है।
        2. बच्चों और बुजुर्गों के लिए अंकुरित अनाज के उपयोग की भी सलाह दी जाती है।
        3. रागी के पौधों के अवशेषों का उपयोग पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है।
        4. पौधे का उपयोग टोकरियाँ, चटाई और छत की छप्पर बनाने के लिए भी किया जाता है।
        रागी के मूल्यवर्धित उत्पाद

        रागी बिस्किट

        सामग्री

        मात्रा

        विधि

        रागी का आटा 1/2 कप
        1. एक मिक्सिंग बाउल में रागी, गेहूं का आटा, चीनी / गुड़, बेकिंग पाउडर तथा इलायची पाउडर डाल कर अच्छी तरह मिला लें।
        2. घी को पिघला कर इसे आटा मिश्रण में डाल दें तथा थोड़ा सा दूध भी डाल लें।
        3. मिश्रण को अच्छी तरह गूंथ कर एक गोला बना लें। ढक कर 30 मिनट के लिए फ्रिज में या 10 मिनट के लिए फ्रीजर में रख दें।
        4. ओवन की 15 मिनट के लिए 170 °C पर प्रीहीट करें।
        5. आटे को छोटी-छोटी लोइया बनाकर हल्का चपटा करें व फोर्क से दबा दें।
        6. उन्हें एक बेकिंग ट्रे पर एक दूसरे से एक इंच की दूरी पर रखें और 15 मिनट के लिए बेक करें।

        गेहूं का आटा 1/2 कप
        पाउडर चीनी/ गुड़ 1/2 कप
        इलायची पाउडर 1/4 छोटा चम्मच
        घी 6-8 छोटा चम्मच
        बेकिंग पाउडर 1/2 चम्मच

        दूध

         

        2 टेबल स्पून

         

        रागी के लड्डू

        सामग्री

        मात्रा

        विधि

        रागी का आटा 1 कप
        1. एक पैन में 1 छोटा चम्मच घी हल्का गर्म करें, उसमें रागी का आटा और गेहूं का आटा डालकर धीमी आंच पर भून लें और एक प्लेट में निकाल कर रख लें।
        2. इलायची पाउडर, काजू और कद्दूकस किया हुआ गुड, एक ब्लेंडर में डालकर एक बार ब्लेंड करें।
        3. एक प्लेट में निकालकर, घी डालकर भुने हुए आटे में डाल कर अच्छी तरह मिला लें और गोल लड्डू बना लें।
        4. लड्डूओं को 15 दिनों के लिए एक कन्टेनर में भर कर रख लीजिये।

        गेहूं का आटा 1/2 कप
        काजू 8

        इलायची पाउडर

         

        1 चुटकी

         

        गुड़

         

        3/4 कप

         

        घी

         

        3 चम्मच