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agriculture department himachal pradesh logo

Department of Agriculture

Himachal Pradesh

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      Himachal Pradesh

        राजमा (Phaseolus vulgaris L.) का गुर्दे के आकार और रंग में समानता की वजह से इसे किडनी बीन्स भी कहा जाता है। इनका रंग हल्का भूरा होता है।

        इसमें उच्च मात्रा में फोलिक एसिड, कैल्शियम, कार्बोहाइड्रेट, फाइबर और प्रोटीन जैसे आवश्यक पोषक तत्व होते हैं।

        राजमाश की खेती

        भूमि

        ● इसे हल्की से भारी भूमियों में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। परंतु दोमट भूमि राजमाश की बढ़ोतरी के लिए बहुत उपयुक्त है।

        ● भूमि को अच्छी तरह तैयार करना चाहिए और वह जल-निकास वाली होनी चाहिए। इसके लिए एक जुताई पर्याप्त होती है।

        बिजाई एवं बीज की मात्रा

        ● असिंचित क्षेत्रों में मानसून के आरंभ होते ही फसल को 25-30 सै.मी. के अंतर की कतारों में बीजना चाहिए। जबकि सिंचित क्षेत्रों में फसल को 15-30 जून के समय में बीजना चाहिए।

        ● इसके लिए 100 कि.ग्रा. बीज प्रति हैक्टेयर पर्याप्त है परंतु मिश्रित खेती में बीज की मात्रा 50 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर प्रयोग करनी चाहिए।

        ● बिजाई से पहले बीज को राईज़ोबियम की उपयुक्त किस्म से परिशिष्ट 2 में लिखे अनुसार उपचारित करें ।

        खाद एवं उर्वरक

        • बिजाई के समय 20 किलोग्राम नाईट्रोजन (45 कि. ग्रा. यूरिया) तथा 60 किलोग्राम फास्फोरस (375 कि.ग्रा. एस.एस.पी.) प्रति हैक्टेयर डालें।

        निराई-गुड़ाई

        • खरपतवारों को नियंत्रण में रखने के लिए दो बार निराई-गुडाई करें। पहली निराई-गुड़ाई बिजाई से 20-25 दिन बाद व दूसरी 40-45 दिन बाद करें।

        कटाई

        • फसल को पूरा पकने पर काट लेना चाहिए और बीज को उस समय भंडार करें जब वह पूरी तरह सूखा हो।
        अनुमोदित किस्में
        किस्में
        विशेषताएँ

        त्रिलोकी राजमाश

         

        • ● इसकी बढ़ौत्तरी झाड़ियों की तरह बौनी होती है, पत्ते चौड़े, गहरे हरे, फूल सफेद तथा दाने मोटे व हल्के पीले रंग के होते हैं जो स्वादिष्ट व अच्छे पकने वाले हैं।
        • ● पौध 45-55 सै.मी. लम्बा और फसल 98-100 दिनों में तैयार हो जाती है।
        • ● उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में यह जीवाणु झुलसा, श्यामवर्ण (एंन्थ्राक्नौज) तथा पत्तों का कोणदार धब्बा के प्रति रोग प्रतिरोधी है परंतु सांगला घाटी में इसमें श्यामवर्ण का माध्यमिक प्रकोप होता है। इसके दाने नहीं गिरते हैं।
        • ● इसकी उपज 25-27 क्विंटल / हैक्टेयर के लगभग है।

        बासपा

         

        • ● यह मध्यम बौनी किस्म है जिसे प्रदेश के ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों के लिए अनुमोदित किया गया है।
        • ● इसमें श्यामवर्ण बिमारी का प्रकोप नहीं होता है।
        • ● इसके दाने गहरे गुलाबी रंग के चितकबरे, सुदंर व मोटे होते हैं जो बहुत बढ़िया पकते हैं।
        • ● यह 110-120 दिन में तैयार हो जाती है।
        • ● इसकी उपज 18-20 क्विंटल / हैक्टेयर के लगभग है।

        कैलाश

         

        • ● यह मध्यम बौनी, झाड़ीनुमा परिमित बढ़वार वाली किस्म है जो लगभग 120-125 दिन में तैयार हो जाती है।
        • ● किन्नौर जिला के 1700-3000 मीटर ऊँचाई तक स्थित क्षेत्रों में बारानी व सिंचित परिस्थितियों के लिए अनुमोदित किया गया है।
        • ● इस किस्म के पत्ते चौड़े तथा पीले से हरे रंग के होते हैं तथा हरी फलियों पर लाल धब्बे और सूखी फलियों पर नांरगी रंग के धब्बे होते हैं।
        • ● इस किस्म के दाने नारंगी चितकबरे रंग के होते हैं जो बहुत बढ़िया पकते हैं।
        • ● यह किस्म किन्नौर में लगभग 30-32 क्विंटल / हैक्टेयर की पैदावार देती है।

        ज्वाला

         

        • ● इस किस्म को कुल्लू, बरोट, चम्बा व शिमला के 1100-1800 मीटर ऊंचाई तक स्थित क्षेत्रों के लिए अनुमोदित किया गया है।
        • ● यह शीघ्र तैयार होने वाली (75-80 दिन) किस्म है जिसके पौधे सीधे व बौने परंतु घने होते हैं।
        • ● इसकी फलियां 8-10 सै.मी. लम्बी होती हैं और प्रत्येक फली में 3-4 दाने होते हैं। इसके दाने गहरे लाल रंग के होते हैं व झड़ते नहीं है।
        • ● इसकी उपज 12-15 क्विंटल / हैक्टेयर के लगभग है।

        हिम-1

         

        • ● यह एक बौनी व जल्दी पकने वाली (80-90 दिन) किस्म है।
        • ● इसकी फलियां 10-13 सैं.मी. लम्बी होती हैं और प्रत्येक फली में 4-5 दाने होते हैं।
        • ● इसके दाने हल्के गुलाबी रंग के होते हैं जिन पर गहरे लाल धब्बे होते हैं।
        • ● इसके अतिरिक्त यह किस्म बड़ी सुगन्धित है।
        • ● इसकी उपज 9 क्विंटल / हैक्टेयर के लगभग है।

        कंचन

         

        • ● यह मध्यम बौनी और जल्दी पकने वाली (ज्वाला व हिम-1 से 7-10 दिन पहले) किस्म है जिसे मध्यवर्ती व ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों के लिए अनुमोदित किया गया है।
        • ● यह अकेली फसल और मक्की में अंतः फसल प्रणाली के लिए उत्तम किस्म है।
        • ● इसके दाने मोटे, गहरे रंग-बिरंगे गुलाबी रंग के हैं जो बढ़िया पकते हैं।
        • ● इसकी उपज 12-15 क्विंटल / हैक्टेयर के लगभग है।