राजमा (Phaseolus vulgaris L.) का गुर्दे के आकार और रंग में समानता की वजह से इसे किडनी बीन्स भी कहा जाता है। इनका रंग हल्का भूरा होता है।
इसमें उच्च मात्रा में फोलिक एसिड, कैल्शियम, कार्बोहाइड्रेट, फाइबर और प्रोटीन जैसे आवश्यक पोषक तत्व होते हैं।



राजमाश की खेती
भूमि
● इसे हल्की से भारी भूमियों में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। परंतु दोमट भूमि राजमाश की बढ़ोतरी के लिए बहुत उपयुक्त है।
● भूमि को अच्छी तरह तैयार करना चाहिए और वह जल-निकास वाली होनी चाहिए। इसके लिए एक जुताई पर्याप्त होती है।
बिजाई एवं बीज की मात्रा
● असिंचित क्षेत्रों में मानसून के आरंभ होते ही फसल को 25-30 सै.मी. के अंतर की कतारों में बीजना चाहिए। जबकि सिंचित क्षेत्रों में फसल को 15-30 जून के समय में बीजना चाहिए।
● इसके लिए 100 कि.ग्रा. बीज प्रति हैक्टेयर पर्याप्त है परंतु मिश्रित खेती में बीज की मात्रा 50 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर प्रयोग करनी चाहिए।
● बिजाई से पहले बीज को राईज़ोबियम की उपयुक्त किस्म से परिशिष्ट 2 में लिखे अनुसार उपचारित करें ।
खाद एवं उर्वरक
- बिजाई के समय 20 किलोग्राम नाईट्रोजन (45 कि. ग्रा. यूरिया) तथा 60 किलोग्राम फास्फोरस (375 कि.ग्रा. एस.एस.पी.) प्रति हैक्टेयर डालें।
निराई-गुड़ाई
- खरपतवारों को नियंत्रण में रखने के लिए दो बार निराई-गुडाई करें। पहली निराई-गुड़ाई बिजाई से 20-25 दिन बाद व दूसरी 40-45 दिन बाद करें।
कटाई
- फसल को पूरा पकने पर काट लेना चाहिए और बीज को उस समय भंडार करें जब वह पूरी तरह सूखा हो।
अनुमोदित किस्में
किस्में |
विशेषताएँ |
त्रिलोकी राजमाश
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बासपा
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कैलाश
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ज्वाला
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हिम-1
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कंचन
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