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Department of Agriculture

Himachal Pradesh

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      Himachal Pradesh

        रोग प्रबंधन

        आक्रमण / लक्षण

        नियंत्रण

        पीला रतुआ: पत्तों और उनके आवरणों पर छोटे-छोटे पीले फफोले कतारों में शिराओं के मध्य प्रकट होते हैं। रोग का प्रकोप अधिक होने पर पौधों को हाथ से छूने पर धारियों से फफूंद के बीजाणु पीले रंग की तरह हाथ में लगते हैं। तापमान में वृद्धि के साथ यह धारियां काली बनना शुरू हो जाती हैं।

        1. रोग प्रतिरोधि किस्में जैसे एच.पी.डब्ल्यू. 360, 368, 349, एच.एस. 562, एच.एस. 542 इत्यादि प्रयोग करें। 2-3 वर्ष बाद इनकी जगह नई अनुमोदित रोग प्रतिरोधी किस्मों को लगाएं।

        2. फसल में बीमारी का पहला लक्षण प्रकट होते ही प्रापिकोनाजोल 25 ई.सी. (0.1%) या मैन्कोजेब 75 डब्ल्यू.पी. (0.2%) का 15 दिन के अन्तर पर छिडकाव करें।

        भूरा रतुआ: गोल व भूरे रंग के बिखरे हुए कील पत्तो पर प्रकट होते हैं।

         

        उपरोक्त
        काला रतुआ: गहरे भूरे रंग की कीलें, तने, पत्तों और पत्तों के आवरणों पर दिखाई देती हैं जो बाद में फट जाती हैं।

        उपरोक्त, अनुमोदित किस्में लगाएं।
        खुली कंगियारी: इस रोग से प्रभावित पौधेकाली बालियां पैदा करते हैं जिनमें फफूंद के बीजाणु पाए जाते हैं। बाद में काले बीजाणु हवा से उड़ जाते हैं और केवल फूल वाली डाली रह जाती है।

        1. रोग प्रतिरोधि किस्में लगाएं।
        2. बीज को प्रोपीकोनाजोल 25 ई.सी. (0.01%) के घोल में 6 घंटे के लिए भिगोएं और फिर छाया में सुखाकर बिजाई करें या बीज का कार्बन्डाजिम (2.5 ग्रा./ कि.ग्रा. बीज) या रेक्सिल (1ग्राम/ कि.ग्रा. बीज) से उपचार करें।
        3. रोग ग्रस्त पौधों को बिमारी के लक्षण प्रकट होते ही निकाल कर जला दें या खेत के बाहर जमीन में दबा दें।

        नोट : बीज का उपचार बिजाई के समय ही करें।

        हिल बन्ट: प्रभावित बालियों में दाने पूरीतरह पकने पर चिपचिपे बीजाणु समूह से भरकर सड़ी मछली जैसी तीव्र गंध देते हैं परंतु इनके दानों के आवरणों पर कोई प्रभाव नहीं होता है।

        बीज का कार्बन्डाजिम (2.5 ग्राम / कि.ग्रा. बीज) से उपचार करें।
        पत्तों पर कंगियारी: पत्तों पर लम्बी काली धारियां शिराओं के समानान्तर बनती हैं। ये धारियां बाद में फटकर काला चूर्ण (बीजाणु समूह) पदार्थ बाहर निकालती हैं। पौधे छोटे रह जाते हैं और रोग-ग्रस्त पत्तों का गिरना प्रमुख लक्षण है।

        1. बीज का कार्बन्डाजिम (2.5 ग्रा./कि.ग्रा. बीज) से उपचार करें।

        2. देरी से बिजाई न करें।

        3. जिन खेतों में बिमारी का प्रकोप होता है,वहां बिजाई के तुरंत बाद सिंचाई करें।

        4. रोग ग्रस्त पौधों को निकाल कर जला दें।

        चूर्णिल आसिता रोग: रोग से प्रभावित पौधों पर फफूंद की सफेद से मटमैली रूई की हल्की तह नजर आती है।

        फसल पर कार्बन्डाजिम (0.05%) का छिड़काव 15 दिन के अन्तर पर करें।
        करनाल बन्ट: पौधे की किसी बाली केकिन्हीं-किन्हीं दानों पर इस बिमारी का प्रकोप होता है। रोग ग्रस्त दाने आंशिक रूप से काले चूर्ण में बदल जाते हैं।

        1. अनुमोदित किस्में लगाएं।

        2. बीज का (कार्बन्डाजिम) (2.5 ग्रा./कि. ग्रा. बीज) से उपचार करें।

        3. प्रोपीकोनाजोल 25 ई.सी. (0.1%) का फसल में पहला छिडकाव फलैग पत्ते की अवस्था में तथा दूसरा छिड़काव पौधों में 50 प्रतिशत बालियों निकलते समय करें (पहले छिड़काव के 10-12 दिन पश्चात)। टिल्ट का छिड़काव केवल बीज फसल के लिये करें।

        नोट: यह देखा गया है कि फफूंदनाशक रसायनों का कीटनाशक रसायनों के मुकाबलेमें अवशेष जहरीलापन नहीं रहता। अगर फसल बीज के लिये फेल होती है तो उस फसल को किसान खाने के लिये उपयोग कर सकता है।

        इयर कॉकल और पीली सड़न: रोगग्रस्त बालियों में दाने नहीं बनते और वह मुड़ जाती हैं। और इन पर पीला चिपचिपा पदार्थ होता है। बाद में बालियों पर गहरे रंग के बिजाणुओं से परिपूर्ण गुब्बारे लगे रहते हैं

         

        1. रोगग्रस्त पौधों को निकाल कर नष्ट कर दें।

        2. बीजों को 5% नमक के घोल में डालकर तैरते हुए बीजों को निकाल कर नष्ट कर दें।