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Department of Agriculture

Himachal Pradesh

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      Himachal Pradesh

        रोग प्रबंधन

         

        आक्रमण / लक्षण

        नियंत्रण

        अगेता झुलसा: पत्तों पर गोल चक्र रूप में भूरे धब्बे बनते हैं जिसके कारण अधिक बिमारी होने पर पत्ते शीघ्र गिर जाते हैं।

        • फसल पर बिमारी के आते ही जिनेव / मेन्कोजेब (डाईथेन जैड-78/ इंडोफिल जैड-78) (0.2%) या डाईथेन एम-45/ इंडोफिल एम-45 (0.2%) या मैटामिल 0.25% (मैटालैक्सिल 8% मैन्कोजैव 64%) का 15 दिन के अंतर पर छिड़काव करें।
        • फसल में अगेता झुलसा व सरकोस्पोरा पता धब्बा बीमारी के लक्षण आते ही या बिजाई के 40 दिन बाद प्रोपिनेब (एन्ट्राकोल 75 डब्ल्यू. पी. 0.25%) का छिड़काव करें। 15 दिन के अन्तराल पर एक और छिड़काव करें।

        पछेता झुलसा: छोटे काले धब्बे पत्तों पर आते हैं जो बढ़ते जाते है और कुछ दिनों में सारे पौधों को मार देते हैं। यदि बारिशें लगातार होती रहें तो उपज में बहुत कमी आ जाती है।

        • बिजाई के लिए स्वस्थ बीज का प्रयोग करें।
        • ऊची मेंढ़े बनाएं ताकि भूमि में आलुओं को बिमारी न लगे।
        • फसल पर बिमारी के आते ही रिडोमिल एम. जैड. 72 डब्ल्यू. पी. या मैटामिल 0.25% मैटालैक्सिल 8% मैन्कोजैव 64%) से 15 दिन के अंतर पर दो बार छिड़काव करें और उसके बाद 7 दिन के अंतर पर इंडोफिल एम-45 (0.25%) से 4 छिड़काव और करें।

        फोमा झुलसा: इसके प्रथम लक्षण पत्तों पर छोटे, गोल बिंदुओ की तरह धब्बे बनते हैं। बिमारी वाले भाग के चारों और पीलापन बनता है और उसके बाद भूरे से गहरे भूरे धारियों वाले गोल धब्बे बनते हैं।

        पछेता व अगेता झुलसा बिमारियों की तरह।

        कामॅन स्कैब: रोग ग्रस्त आलुओं का छिलका भद्दा हो जाता है और उसमें गहरे छेद पड़ जाते हैं। आलुओं पर भूरे से काले कार्क की तरह धब्बे बन जाते हैं।

        • स्वस्थ व रोग रहित बीज का प्रयोग करें।
        • बिजाई के समय बीज के आलुओं को थीरम के घोल (0.25%) (25 ग्रा. थीरम 10 लीटर पानी) में 30 मिनट तक उपचार करें।
        • किसान खाद के स्थान पर अमोनियम सल्फेट खाद का प्रयोग करें।

        ब्लैक स्कर्फ: आलुओं से उगती हुई शाखाएं मर जाती हैं। भूमि के अंदर वाले भागों में कैंकर जैसी बढ़ौतरी बनती है और आलुओं पर भूरे काले बिमारी के अंश प्रकट होते हैं।

        बीज के आलुओं को बोरिक एसिड (फार्मास्यूटिकल ग्रेड) (3%) के घोल में 30 मिनट के लिए या एगालॉल (0.5%) के घोल में 30 मिनट या एसिटिक एसिड (1%, जिन्क सल्फेट 0.05%) के घोल में 15 मिनट के लिए उपचार करें। इन घोलों को आलुओं के उपचार के लिए 20 बार प्रयोग में लाया जा सकता है।

        पाऊडरी स्कैब: आरंभ में आलुओं पर उभरी हुई कीलें प्रकट होती हैं। बाद में गड्ढे / छेद बन जाते हैं जिनके अंदर फफूंद भर जाती है जो पतले छिलके से घिरे रहते है।

        • बिजाई के लिए स्वस्थ बीज का प्रयोग करें।
        • रोग-ग्रस्त खेतों में फसल न लगाएं।
        • बीज का थीरम (0.25) के घोल में 30 मिनट तक उपचार करें।

        बैक्टीरियल विल्ट: इस बिमारी के प्रमुख लक्षण पौधों व पत्तों का मुरझा कर नीचे झुकना है जिससे बाद में पूरा पौधा मुरझा जाता है और आलुओं के अंदर भूरापन आ जाता है।

        • मक्की व अन्य फसलों के साथ फसल चक्र अपनाएं।
        • बिजाई के समय मेंढ़ों पर मिट्टी अच्छी तरह से चढ़ाएं।
        • बिजाई के लिए रोग-रहित बीज का प्रयोग करें।

        विषाणु रोग (पी.वी.वाई.): पत्तों के हरे रंग के बीच हल्के भूरे रंग के धब्बे बनते हैं। प्रायः पत्तों पर हल्के निर्जीव धब्बे प्रकट होते हैं। पौधे छोटे रह जाते हैं।

        • प्रमाणित बीज ही प्रयोग करें।
        • फसल में 750 मि.ली. मिथाइल डेमिटान (मैटासिस्टाक्स 25 ई.सी.) का 750 ली. पानी में प्रति हैक्टेयर छिड़काव करें।
        • जहां तक संभव हो, मध्य अगस्त तक फसल में ऊपर के भागों को काट दें।