उर्वरक
क्षेत्र |
तत्व (कि.ग्रा/है.)* |
उर्वरक (कि.ग्रा/है.) |
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ना. | फा. | पो. | यूरिया | डीएपी** | या एसएसपी | एमओपी | |
सिंचित | 120 | 60 | 30 | 260 | 130 | 375 | 50 |
असिंचित | 80 | 40 | 40 | 175 | 85 | 250 | 65 |
उर्वरक (कि.ग्रा/बीघा) |
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सिंचित | 10 | 30 | 4 | ||||
असिंचित | 7 | 20 | 5 |
* इन तत्वों को अन्य उर्वरकों द्वारा भी दिया जा सकता है जो बाजार में उपलब्ध हों।
**सिंचित क्षेत्रों के अंतर्गत जब 130 कि.ग्रा. डीएपी प्रयोग किया गया हो तो यूरिया 50 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर कम देनी चाहिए। इसी प्रकार असिंचित क्षेत्रों के अंतर्गत जब 85 कि.ग्रा. डीएपी प्रयोग किया गया हो तो यूरिया 30 कि. ग्रा. या किसान खाद 60 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर कम देनी चाहिए।
नोट:
- यदि बारानी क्षेत्रों में गेहूं की बिजाई 20 दिसंबर के बाद की हो तो बिजाई के तुरंत बाद गोबर की खाद 15 टन/हैक्टेयर की दर से भूमि की सतह पर बिखेर देनी चाहिए। गोबर की खाद को मिट्टी में न मिलाएं।
- यदि किसान अधिक खाद देने की क्षमता रखतें हों तो मक्की-गेहूं/धान-गेहूं की फसल प्रणाली में गेहूं की फसल को सिंचित क्षेत्रों में उर्वरकों की मात्रा को 50 प्रतिशत अधिक दें व साथ में 10-12 टन देसी खाद / हैक्टेयर डालें जिससे गेहूं की 50 क्विंटल / हैक्टेयर उपज लगातार प्राप्त की जा सकती है।
(i) खाद देने का समय व ढंग:
सिंचित क्षेत्रों में फास्फोरस व पोटाश की सारी मात्रा और नाईट्रोजन की आधी मात्रा बिजाई के समय पोरा विधि से खेत में डालनी चाहिए। नाईट्रोजन की शेष आधी मात्रा पौधे की मूसल जड़ें निकलने की अवस्था में डालनी चाहिए। नाईट्रोजन की प्राप्ति के लिए यूरिया का प्रयोग करना चाहिए जिसे सिंचाई या वर्षा के बाद खेत में डालना चाहिए।
असिंचित या बारानी क्षेत्रों में नाईट्रोजन की पहली मात्रा बिजाई के समय पोरा विधि से देनी चाहिए और बाकी आधी मात्रा पहली बारिश होने पर देनी चाहिए।
उर्वरकों की मात्रा केवल भूमि की सामान्य उपजाऊ शक्ति के आधार पर दी गई है। अधिक पैदावार लेने के लिए खेत की मिट्टी का परीक्षण कराना चाहिए, ताकि उर्वरकों की सही मात्रा फसल में डाली जाए। यदि गेहूं की फसल में गोबर की खाद डाली हो तो उर्वरकों की मात्रा आवश्यकतानुसार डालें।
यदि भूमि तेजाबी हो तो उसमें एक टन चूना प्रति हैक्टेयर बिजाई के 20 दिन पहले मिट्टी में मिलाएं परंतु मिट्टी को चूने की आवश्यकता के लिए परीक्षण करवाना चाहिए और इसका प्रयोग 2-3 साल के लिए पर्याप्त होता है। गेहूं की फसल के लिए निश्चित उपज प्रणाली अपनाएं।
जस्ता (जिंक) की कमी प्रायः रेतीली भूमियों में होती है। अतः जिंक सल्फेट 25 किग्रा / हैक्टेयर की दर से बिजाई के 15 दिन पहले उन भूमियों में डालें जहां जस्ता की कमी हो।