रोग प्रबंधन
आक्रमण / लक्षण |
नियंत्रण |
ब्लास्ट: नर्सरी व दौजियां निकलने की अवस्थाओं में पत्तों पर छोटे भूरे से नीले रंग के, जलसिक्त, नाव के आकार के धब्बे बनते हैं। पुराने धब्बों के मध्य भाग भूरे से हल्के स्लेटी रंग के हो जाते हैं । ऐसे धब्बे, तनों पर्णच्छद, बालियों और दानों पर भी बनते हैं। बालियों की रोग ग्रस्त ग्रीवा सिकुड़ जाती है और कई बार रोयेंदार फफूंद वृद्धि भी दिखाई देती है। |
1. रोग प्रतिरोधी किस्में जैसे आ.पी. 2421, एच.पी. आर. 2143, सुकारा धान-1, कस्तूरी बासमती आदि किस्में लगाएं। 2. बिजाई से पहले बीज को कार्वेंडाजिम 50 डब्ल्यू पी (बैविस्टिन) या ट्राइसाइक्लाजोल (बीम) 75 डब्ल्यू. पी. का 2.5 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें। 3. दौजिया निकलने के समय 750 ग्राम कार्वेंडाजिम 50 डब्ल्यू पी (बैविस्टिन) या 750 मि. ली. कीटाजीन (हिनोसान) का 750 लीटर पानी में छिड़काव करें या बालियां निकलने के बाद 300 ग्राम ट्राइसाइक्लाजोल (बीम) 75 डब्ल्यू पी का 500 लीटर पानी में छिड़काव करें। अधिक बारिश वाले क्षेत्रों में छिड़काव वाले घोल में चिपकने वाले पदार्थ – स्टिकवैल (0.2 ग्राम प्रति लीटर पानी) को मिलाएं। 4. नाईट्रोजन खाद मात्रा आवश्यकता से अधिक न दें। |
जीवाणु झुलसा: यह बिमारी प्रायः फसल में फूल आने के समय आती है। पत्तों के ऊपरी किनारों से लम्बी धारियां बनती हैं। यह धारियां पूरे पत्ते पर आ जाती हैं और सफेद मटमैले रंग में बदल जाती हैं। |
1. नर्सरी में भारी बीजों का प्रयोग करें। बीजों को 5 प्रतिशत नमक के घोल में डालें व हल्के बीजों को निकाल लें। 2. रोग प्रतिरोधी किस्में लगाएं। |
तना सड़न: जब पौधे 2-3 महीने के होते हैं तो पानी की सतह से पौधों पर छोटे-छोटे काले, बेतरतीब धब्बे पर्णच्छद पर आते हैं। तना नर्म पड़कर सड़ने लगता है तथा गिर जाता है। अधिक बीमारी आने पर पौध मर जाता है। रोग-ग्रस्त पौधे या तो दाने पैदा नहीं करते या पैदा हुए दाने सिकुड़े हुए होते हैं। प्रभावित पौधे के तने के अन्दर काले रंग के गोल-गोल आकार के स्कलेरोशिया मिलते हैं जो इस बिमारी के प्रमुख लक्षण हैं। |
1. खेत में अधिक समय के लिए पानी खड़ा न रहने दें। 2. फसल की कटाई के बाद पौधों के अवशेषों को इकट्ठा करके जला दें। 3. रोग प्रतिरोधी किस्में बासमती प्रजाति को बीजें। |
भूरा धब्बा: पत्तों पर अण्डाकार, भूरे धब्बे जो बीच में से धूसर या सफेद होते हैं, प्रकट होते हैं, अधिक बिमारी आने पर पत्ते मुरझा जाते हैं। बालियों पर काले या गहरे भूरे रंग के धब्बे बनते हैं जो कभी-कभी पूरी बालियों पर आ जाते हैं जिससे दानों पर भी बिमारी आ जाती है। ऐसे में बालियां टूट जाती हैं और सिकुड़े हुए दाने बनते हैं। |
1. बीज को थिरम (3 ग्राम / कि.ग्रा. बीज) से उपचार करें। 2. नर्सरी में मैनकोजैब 75 डब्लयु पी. (इंडोफिल एम-45) या इंडोफिल जैड-78 (0.25 प्रतिशत) (5 ग्राम 2 लीटर पानी में प्रति 100 वर्ग मीटर क्षेत्र) का छिड़काव करें। 3. जिन क्षेत्रों में यह रोग उग्र रूप में प्रकट होता है वहां पर प्रोपिकोनाजोल 25 ई.सी. (टिल्ट 1 मि. ली. दवाई प्रति लीटर पानी) के दो छिड़काव पौध रोपण के 45 और 65 दिन बाद करें। 4. रोग ग्रस्त क्षेत्रों में प्रतिरोधी किस्में लगाएं। |
तुष धब्बा: यह बिमारी उस समय आती है जब बालियां अभी अंदर ही होती है। काले भूरे रंग के धब्बे जो गोल होते हैं, तुष पर प्रकट होते हैं। यदि बिमारी जल्दी आ जाये और अधिक हो तो सारे दाने काले हो जाते हैं। परन्तु अधिक बिमारी आने पर दानों का भार कम हो जाता है। |
फसल में तीन बार छिड़काव करें। पहला छिड़काव कार्बन्डाजीम (बैविस्टिन) 50 डब्ल्यु. पी. (0.1 प्रतिशत) से बालियां निकलने के समय, दूसरा छिड़काव इंडोफिल एम-45 (0.25 प्रतिशत) से पहले छिड़काव के 10 दिन बाद व तीसरा छिड़काव मैन्कोजैव 75 डब्ल्यु. पी. (0.25 प्रतिशत) से दूसरे छिड़काव के 10 दिन बाद करें। नोट: |
मिथ्या कांगियारी: दाना हरा, मखमली फफूंद बीजाणू के गोले में बदल जाता है और यह उस समय प्रकट होता है जब बालियां पकने लगती हैं। यह फफूंद का गोला बाहर से हरा पंरतु अंदर से पीले से नारंगी होता है फसल में फूल आने की अवस्था में यदि वातावरण में अधिक नमी, अधिक बारिश व बादल रहें तो बिमारी का प्रकोप अधिक होता है। |
1. रोग ग्रस्त बालियों को इक्ट्ठा करके जला दें। 2. नाईट्रोजन उर्वरक की अधिक मात्रा न दें। |
पर्णच्छद सड़न: इस बिमारी से सबसे ऊपर वाली पर्णच्छद में सड़न आ जाती है जहां पर लम्बे व वेतरतीब धूसर भूरे चकते बनते हैं उसके बाद यह चकते आपस में मिलकर बड़े धब्बे बना देते हैं। अधिक बिमारी आने पर बालियां बाहर नहीं निकलती हैं या कम निकलती हैं और दाने नहीं बनते हैं। |
1. रोग रहित बीज का प्रयोग करें। 2. रोग ग्रस्त अवशेषों को कटाई के बाद जला दें। |