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Department of Agriculture

Himachal Pradesh

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      Himachal Pradesh

        हिमाचल प्रदेश में पिछले कुछ वर्षों से मक्की उगाने वाले किसानों में बेबी कार्न की खेती करने में रूचि रही है। मक्की का भुट्टा जिसमें रेशमी बाल निकलें अभी 2-3 दिन हुए हों और काट लिया जाये, उसे बेबी कार्न कहते हैं।

        बेबी कार्न को सलाद के रूप में प्रयोग किया जा सकता है या इसे विभिन्न व्यंजनों जैसे चोप-सुई (चीन का व्यंजन), सूप, मीट या चावल में तलकर, सब्जियों में मिलाकर, आचार, पकौड़े आदि में प्रयोग किया जा सकता है। इसमें फास्फोरस की मात्रा अधिक (86 मि.ग्रा./100 ग्राम) है जबकि अन्य सब्जियों में यह मात्रा 21-57 मि.ग्रा. है। इसमें ऊर्जा कम और रेशे की मात्रा अधिक है जबकि क्लोस्ट्रोल बिल्कुल नहीं है।

        इसकी खेती में सभी क्रियाएं मक्की की तरह ही हैं परंतु इसमें पौधों की संख्या तथा नाईट्रोजन की मात्रा अधिक होनी चाहिए तथा इसकी कटाई उपयुक्त समय पर करनी चाहिए।

        बेबी कार्न की खेती

        बेबी कार्न की फसल में नरफूल को निकलते ही काट देने से एक पौधे पर अधिक भुट्टे लगते हैं और निष्काशित किये हुए भुट्टों में कमी आती है। इस प्रकार 10-15 प्रतिशत अधिक उपज प्राप्त होती है।

        बिजाई का तरीका

        ● फसल को हल के पीछे 40 सें.मी. की दूरी पर पंक्तियों में बीजना चाहिए।

        ● कम्पोजिट किस्मों के लिए पौधों के बीच 20 सें.मी. (1.25 लाख पौधे प्रति हैक्टेयर) तथा संकर किस्मों के लिए 17.5 सें.मी. (1.43 लाख पौधे प्रति हक्टेयर) की दूरी रखनी चाहिए।

        अनुमोदित किस्में
        किस्में
        विशेषताएँ
        वी एल-78 कम्पोजिट
        • ● यह जल्द तैयार होने व अधिक पैदावार देने वाली तथा एक ही पौधे पर अधिक भुट्टे लगने वाली बेबी कार्न की कम्पोजिट किस्म है।
        • ● इस किस्म के पौधे छोटे से लेकर मध्यम लम्बाई के होते हैं। औसत लम्बाई 186 सैं.मी. जिस कारण प्रति इकाई भूमि में अधिक पौधे पाये जाते हैं।
        • ● इस किस्म में रेशमी बाल 50 दिन में आने लगते हैं और यह किस्म 5-6 तुड़ाईयों में बेबी कार्न की 16 क्विंटल / हैक्टेयर की औसत पैदावार देती है जोकि वी.एल. 42 संकर किस्म के बराबर है। यह अर्ली कम्पोजिट से 32 प्रतिशत अधिक पैदावार देती है।
        • ● इस किस्म के भुट्टे हल्के पीले रंग के व दानों की नियमित पंक्तियों वाले, पतले (1.31 सैं.मी.), लम्बे 8.1 सैं.मी., मीठे और स्वाद में चरमराहटदार होते हैं। रेशमी बाल मुलायम चमकीले और नांरगी रंग के होते हैं।
        • ● यह किस्म बेबी कार्न के अतिरिक्त हरे चारे की लगभग 300 क्विंटल / हैक्टेयर पैदावार भी देती है।
        वी एल-42 अर्ली कम्पोजिट
         

         

        खाद व उर्वरक
        तत्व
        उर्वरक
        (कि.ग्रा./है.)
        (कि.ग्रा./है.)
        (कि.ग्रा./बीघा)
        ना.
        फा.
        पो.
        यूरिया
        एस.एस.पी.
        एम.ओ.पी.
        यूरिया
        एस.एस.पी.
        एम.ओ.पी.
        150
        60
        40
        325
        375
        65
        26
        30
        5
         
        (कि.ग्रा./ कनाल)
        13
        15
        2.5

        ● बिजाई से पहले खेत तैयार करते समय 10 टन देसी खाद प्रति हैक्टेयर डालें।

        ● नाईट्रोजन का एक तिहाई भाग तथा फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा बिजाई के समय डाल दें।

        ● नाईट्रोजन की एक तिहाई मात्रा को फसल में उस समय डालें जब वह घुटने (बिजाई के 25 दिन बाद) तक हो और शेष एक तिहाई मात्रा को नरफूल निकलने के समय (बिजाई के 40 दिन बाद) डालें।

        कटाई व उपज
        कटाई

        ● बेबी कार्न के भुट्टों को रेशमी बाल निकलने के 2-3 दिन के अन्दर तोड़ लें और ध्यान रहे कि तने का ऊपरी भाग तथा निचला पत्ता न टूटे। तुड़ाई शुरू होने पर हर तीसरे दिन भुट्टों को तोड़े।

        ● पूरे फसल काल में 7-8 बार तुड़ान करना पड़ता है।

        उपज

        ● एक फसल से 15-18 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उपज प्राप्त होती है परंतु प्रदेश के मध्यवर्ती क्षेत्रों में मई से सितम्बर तक कम से कम दो फसलें लेनी चाहिए।

        ● इसके अतिरिक्त 250-400 क्विंटल प्रति हैक्टेयर हरा चारा भी मिलता है।

        ● बेबी कार्न से दानों वाली फसल की तुलना में 2-3 गुणा अधिक आय प्राप्त हो सकती है।