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Department of Agriculture

Himachal Pradesh

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      Himachal Pradesh

        हमारे देश मे माश (Vigna Mungo) का उपयोग प्रमुख रूप से दाल के रूप मे किया जाता है। माश की दाल व्यंजन जैसे कचैड़ी, पापड़, बड़ी, हलवा, इमरती, पूरी, इडली, डोसा आदि भी तैयार किये जाते है।

        इसमें भरपूर मात्रा में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, फैट, विटामिन बी-6, आयरन, फोलिक एसिड, कैल्शियम, मैग्नीशियम और पोटेशियम जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं। माश दलहन फसल होने के कारण वायुमण्डल की नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करके भूमि की उर्वरा शक्ति मे वृद्धि करती है। इसके अतिरिक्त माश को उगाने से खेत मे पत्तियाँ एवं जड़ रह जाने के कारण भूमि मे कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ जाती है।

        इसकी दाल की भूसी पशु आहार के रूप मे उपयोग की जाती है। माश के हरे एवं सूखे पौधो से उत्तम पशु चारा प्राप्त होता है। माश की फसल को हरी खाद के रूप मे उपयोग किया जा सकता है।

        अनुमोदित किस्में
        किस्में
        विशेषताएँ

        हिम माश-1

         

        • ● यह किस्म सम-पर्वतीय और निचले पर्वतीय सम-उष्णकटिबंध खंड (निचले क्षेत्र) के क्षेत्रों के लिए उपयुक्त किस्म है।
        • ● यह भूरे से काले दानों वाली तथा अधिक पैदावार देने वाली किस्म है जो एक समय पर पककर तैयार हो जाती है। यह किस्म लगभग 74-76 दिनों में पककर तैयार हो जाती है।
        • ● यह माश की प्रचलित किस्मों यू. जी. 218 तथा पन्त यू.-19 के मुकाबले पीली मोजेक बिमारी के लिए अधिक रोग प्रतिरोधी किस्म है।
        • ● यह लीफकर्ल (करिंकल), श्यामवर्ण धब्बा (एंथ्राक्नौज) और चूर्णिल आसिता बिमारियों के लिए भी प्रतिरोधी है परन्तु सर्कोस्पोरा पत्ता धब्बा रोग के लिए मध्यम सहनशील है।
        • ● इसकी औसत उपज 14-16 क्विंटल प्रति हैक्टेयर के लगभग है।

        यू. जी.-218

         

        • ● यह किस्म सम-पर्वतीय और निचले पर्वतीय सम-उष्णकटिबंध खंड (खंड-1) के क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है।
        • ● यह किस्म 80-85 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है।
        • ● इसको जैद फसल के रूप में गर्मी की ऋतु में सिंचित क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है परन्तु इसकी बिजाई मार्च के पहले पखवाडे में कर देनी चाहिए।
        • ● इसके पौधे बौने तथा लम्बाई 30-40 सै.मी. होती है।
        • ● फलियां 3-5 के समूह में लगती है और प्रत्येक फली में 5-7 दानें होते हैं जो काफी मोटे होते हैं। फलियों पर बाल होते हैं।
        • ● यह पीली मौजेक के प्रति प्रतिरोधी है और सरकोस्पोरा पत्ता धब्बा बिमारी के लिए सहनशील है।
        • ● इसकी उपज 12 क्विंटल प्रति हैक्टेयर के लगभग है।

        पालमपुर-93

         

        • ● यह किस्म पिछले कई वर्षों से मौसम की घटती बढ़ती परिस्थितियों में भी एक समान पैदावार देती आई है।
        • ● यह किस्म कई बिमारियों जैसे कि सरकोस्पोरा पत्ता धब्बा तथा चर्णिल आसिता बिमारियों के लिए प्रतिरोधी है।
        • ● यह कुल्लू, मण्डी तथा कांगड़ा जिलों के ऊपरी इलाकों के लिए उपयुक्त है।
        • ● यह किस्म संगठित, मध्यम ऊँचाई वाली अर्ध-अनिश्चिता तथा फलियों पर बाल वाली किस्म है।
        • ● यह 85-90 दिनों में तैयार होती है।
        • ● इसके दाने बड़े, गहरे काले रंग वाले तथा सख्त नहीं होते हैं। यह पकने में बहुत अच्छी किस्म है तथा प्रोटीन की मात्रा 26.2 प्रतिशत है।
        • ● इसकी उपज 8-10 क्विंटल प्रति हैक्टेयर के लगभग है।