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Department of Agriculture

Himachal Pradesh

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      Himachal Pradesh

        शिमला मिर्च मध्य पर्वतीय क्षेत्रों (सोलन, कुल्लू, सिरमौर, मण्डी, चम्बा, कागंड़ा व शिमला) की एक प्रमुख नकदी फसल है।

        शिमला मिर्च की खेती

        बिजाई एवं रोपाई

        शिमला मिर्च की पौध तैयार करने का उचित समय व ढंग :-

        निचले पर्वतीय क्षेत्र नवम्बर, फरवरी से मार्च, अगस्त
        मध्य पर्वतीय क्षेत्र मार्च से मई
        ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र रोपण योग्य पौध को निचले या मध्य पर्वतीय क्षेत्रों से लाना या पौध को नियन्त्रित वातावरण में इस तरह तैयार करें ताकि अप्रैल-मई में रोपाई हो सके। बीज अंकुरण के समय तापमान 20° सेल्सियस होना चाहिए। जब पौध 10-15 सैंटीमीटर ऊंची हो जाए तो समतल खेत अथवा मेढ़ें (अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में) बनाकर दोपहर बाद या शाम के समय इसकी रोपाई कर दें। रोपाई के बाद सिंचाई करना ओर कुछ दिनों तक हाथ से पानी देना अति आवश्यक है।

        पौधों को निम्नलिखित दूरी पर लगाएः

        पंक्ति से पंक्ति 60 सें. मी.
        पौधे से पौधे 45 सै. मी.

        निवेश सामग्री:

         
        प्रति हैक्टेयर
        प्रति बीघा
        प्रति कनाल
        बीज (ग्राम)
        सामान्य किस्में 750-900 60-80 30-40
        संकर किस्में 200-250 16-20 8-10
        खाद एवं उर्वरक
        सामान्य / संकर किस्में      
        गोबर की खाद (क्विंटल) 200-250 16-20 8-10
        विधि –1
        यूरिया (कि. ग्रा.) 200 16 8
        सुपरफॉस्फेट (कि. ग्रा.) 475 40 20
        म्यूरेट ऑफ पोटाश (कि. ग्रा.) 90 7 3.5
        विधि –2
        12:32:16 मिश्रित खाद (कि. ग्रा.) 234 18.7 9.4
        म्यूरेट ऑफ पोटाश (कि. ग्रा.) 29 2.3 1.2
        यूरिया (कि. ग्रा.) 156.3 12.5 6.3
        खरपतवार नियन्त्रण
        लासो (लीटर) या 4 320 मि.ली. 160 मि.ली.
        स्टॉम्प 4 320 मि.ली. 160 मि.ली.

        संकर किस्मों से अधिक उपज लेने के लिए 480 कि.ग्रा. यूरिया (240 कि.ग्रा. नत्रजन) व 375 किलो ग्राम सुपरफास्फेट (60 किलो ग्राम फॉस्फोरस) प्रति हैक्टेयर दें।

        अनुमोदित किस्में
        किस्में
         विशेषताएँ
        कैलीफोर्निया वन्डर पौधा मध्यम ऊंचाई वाला, फल चमकीले हरे रंग का व 3-4 उभार वाला, पहली तुड़ान लगभग 75 दिन बाद। ऊपर बताए गए सभी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त किस्म। पैदावार 125-150 क्विंटल प्रति हैक्टेयर ।
        सोलन भरपूर नयी किस्म, रोपाई से लगभग 70-75 दिनों में तैयार, फल घण्टीनुमा आकार, गहरे हरे, 50-60 ग्राम भार प्रति फल। औसतन उपज 300 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तथा फल सड़न रोग व जीवाणु पत्ता धब्बा रोग सहनशील।
         

        विशेषः

        ऊपर लिखी सभी प्रजातियां जीवाणु मुरझान रोग (बैक्टीरियल विल्ट) जोकि कांगड़ा घाटी तथा साथ लगने वाले मण्डी व चम्बा के क्षेत्रों में शिमला मिर्च व मिर्च की फसल को पूर्णतयः नष्ट कर देता है, से बहुत अधिक प्रभावित होती हैं। अतः ऐसे क्षेत्रों में शिमला मिर्च की खेती को नहीं करना चाहिए।

        सस्य कियाएं

        विधि-1: खेत में तीन-चार बार हल चलाएं तथा प्रत्येक जुताई के बाद सुहागा चलाएं जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जाए। गोबर की खाद, सुपर फॉस्फेट, म्यूरेट ऑफ पोटाश की पूरी मात्रा तथा यूरिया की आधी मात्रा खेत तैयार करते समय डाल दें। यूरिया का एक चौथाई भाग रोपाई के एक महीने बाद तथा शेष चौथाई इसके एक महीने बाद डालें।

        विधि-2: गोबर की खाद, 12:32:16 मिश्रित खाद व म्यूरेट ऑफ पोटाश की सारी मात्रा खेत तैयार करते समय डालें। यूरिया खाद को दो बराबर हिस्सों में एक निराई-गुड़ाई के समय तथा दूसरी फूल आने के समय डालें।

        खरपतवारनाशी दवाई एलाक्लोर (लासो) अथवा स्टाम्प को रोपाई के एक या दो दिन पहले खेत में स्प्रे कर दें। स्टाम्प को रोपाई के 8-10 दिन बाद भी स्प्रे किया जा सकता है। सिचांई भूमि की दशा, मौसम तथा वर्षा की मात्रा पर निर्भर करती है। गर्म मौसम में 4-7 दिन तथा ठण्डे मौसम में 10-15 दिन के अन्तराल पर फसल में सिंचाई की जानी चाहिए । पौधों की 2-3 बार गुड़ाई करना आवश्यक है तथा 30-40 दिन के बाद मिट्टी चढ़ानी चाहिए । वर्षा ऋतु में खेतों से पानी के निकास का प्रबन्ध समय पर कर दें ।

        तुड़ाई एवं उपज

        फलों का पूर्ण आकार होने पर चमकीला हरा रंग बदलने से पहले तोड़ लें। शिमला मिर्च की औसत पैदावार इस प्रकार है:

        किस्में प्रति हैक्टेयर प्रति बीघा प्रति कनाल
        सामान्य किस्में (क्विंटल) 100-125 8-10 4-5
        संकर किस्में (क्विंटल) 125-200 10-16 5-8
        बीज उत्पादन

        यह फसल “प्रायः पर-परागित” होने के कारण बीज उत्पादन के लिए दो प्रजातियों के बीच कम से कम 200 मीटर का अन्तर होना आवश्यक है। सामान्य प्रजाति का बीज कृषक स्वयं तैयार कर सकते है। परन्तु संकर प्रजाति का बीज हर वर्ष नया ही लें। बीजोत्पादन के लिए फसल को सामान्य मंडीकरण वाली फसल की भांति ही लगाया जाता है परन्तु फलों को पूर्णतयः पकने पर ही तोड़ते हैं।

        प्रमाणित बीज पैदा करने के लिए फसल का निरीक्षण फूल आने से पूर्व, फूल व फल बनते समय और फल पकने के समय अवश्य करें ताकि अवांछनीय फलों व पौधों को अलग किया जा सके। स्वस्थ व उत्तम पके हुए फलों का बीज प्लास्टिक के बर्तन में निकालें और छाया या हल्की धूप में सुखाकर भंण्डारण करें।

        बीज उपज

        प्रति हैक्टेयर प्रति बीघा प्रति कनाल
        75-100 कि. ग्रा. 6-8 कि. ग्रा. 3-4 कि. ग्रा.