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Department of Agriculture

Himachal Pradesh

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    Department of Agriculture

      Himachal Pradesh

        टमाटर मध्य पर्वतीय क्षेत्रों (सोलन, सिरमौर, कुल्लू, मंडी आदि) की एक प्रमुख नकदी फसल है।

        निचले पर्वतीय क्षेत्रों, विशेषकर कांगड़ा जिला के देहरा व नूरपुर उपमण्डल तथा साथ लगने वाले कुछ अन्य स्थानों में व बिलासपुर के कुछ भागों में भी किसान टमाटर की बारानी फसल लेकर कृषक अच्छी आमदनी ले रहे हैं।

        टमाटर की खेती

        निवेश सामग्री

         
        प्रति हैक्टेयर
        प्रति बीघा
        प्रति कनाल
        बीज (ग्राम)
        सामान्य किस्में 400-500 35-40 16-20
        संकर किस्में 100-150 8-12 4-6
        खाद एवं उर्वरक
        गोबर की खाद (क्विंटल) 200 20 10
        विधि-I
        यूरिया (कि. ग्रा.) 220 (325) * 18 (26) 9 (13)
        सुपरफॉस्फेट (कि. ग्रा.) 470 (750) * 38 (60) 19 (30)
        म्यूरेट ऑफ पोटाश (कि. ग्रा.) 90 7 3.5
        विधि-II
        12:32:16 मिश्रित खाद (कि. ग्रा.) 175 (375) 19 (30) 10 (15)
        म्यूरेट ऑफ पोटाश (कि. ग्रा.) 45 2.5 1.2
        यूरिया (कि. ग्रा.) 156 (229) 12.5 (18. 5) 6.3 (9)
        खरपतवार नियन्त्रण
        लासो (लीटर) या 4 लीटर 320 मि. ली. 160 मि. ली.
        बैसालिन अथवा 2.5 लीटर 200 मि. ली. 100 मि. ली.
        स्टाम्प 4 लीटर 320 मि. ली. 160 मि. ली.
        सुपर फास्फेट 119 कि. ग्रा

        *नोट: संकर किस्मों के लिए यूरिया, सुपरफॉसफेट की मात्रा व 12:32:16 मिश्रित खाद कोष्ठों में दी गई मात्रा अनुसार डालें।

        बिजाई व रोपाई

        सबसे पहले टमाटर की पौध तैयार की जाती है। नर्सरी बिजाई का उचित समय निम्न है:

        निचले पर्वतीय क्षेत्र जून-जुलाई (बारानी क्षेत्र), नवम्बर, फरवरी (सिंचित क्षेत्र)
        मध्य पर्वतीय क्षेत्र फरवरी-मार्च (सिंचित अवस्था), मई-जून (आंशिक सिंचित / बारानी)
        ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र रोपण योग्य पौधा को निचले / मध्य पर्वतीय क्षेत्रों से लाना या पौध को नियन्त्रित वातावरण में इस तरह तैयार करना ताकि अप्रैल-मई में रोपण हो सकें।

        जब पौध 10-15 सैंटीमीटर ऊंची हो जाये तो समतल खेत अथवा मेढ़े (अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में) बना कर दोपहर बाद/शाम के समय इनकी रोपाई कर दें। रोपाई के बाद सिंचाई करना और कुछ दिनों तक फब्बारे से पानी देना अति आवश्यक है। पौधों को निम्नलिखित दूरी पर लगायेंः

        बौनी बढ़वार वाली किस्में 60 X 45 सें. मी.
        ऊंची बढ़वार वाली किस्में 90 x 30 सें. मी.

        निराई-गुडाई एवं खरपतवार नियन्त्रण

        फसल में दो बार निराई-गुड़ाई करें, पहली पौधा रोपण के 2-3 सप्ताह बाद और दूसरी इसके एक महीने बाद करें। वार्षिक एवं चौड़े पत्तों वाले तथा मोथा खरपतवारों के लिए पौध लगाने से पहले एलाक्लोर (लासो) 2 किलो ग्राम (स.प.) / है. 700-800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। यदि केवल वार्षिक खरपतवारों की समस्या हो तो पौधा रोपण से पहले पैन्डीमिथालिन (स्टाम्प) 1.2 कि. ग्रा. (स.प.) / है. का छिड़काव करें।

        अनुमोदित किस्में

        आनुवंशिकता के आधार पर प्रजातियों को शुद्ध वंश कमों व संकर तथा पौध बढ़वार के अनुसार छोटी (बौनी) तथा लम्बी किस्मों में बांटा जा सकता है।

        कम वर्षा वाले क्षेत्रों को छोड़कर अन्य सभी प्रमुख क्षेत्रों में लम्बी बढ़वार वाली प्रजातियां ही अच्छी पैदावार देती हैं क्योंकि ये फल अधिक समय तक देती है तथा झांबे लगाने से फल सड़न रोग कम लगता है।

        किस्में

        विशेषताएँ

        सोलन बज (यू एच एफ-।।)
        इसके फल का आकार दिल की तरह, सख्त और छिलका मोटा है।
        फल का वजन लगभग 70 ग्राम व बीमारियों का प्रकोप भी कम है।
        यह लगभग 70-75 दिनों में तैयार होने वाली किस्म है तथा उपज 425-475 क्विंटल / हैक्टेयर है।
        इसको प्रदेश के मध्य पर्वतीय क्षेत्रों (जोन-2) जहां पर जीवाणु मुरझान रोग का प्रकोप न हो में उगाने के लिए अनुमोदित किया गया है।
        पालम पिंक
        ये एक नई जीवाणु मुरझान रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली किस्म है जिसका अनुमोदन प्रदेश के अत्याधिक प्रभावित क्षेत्रों (निचले एवं मध्यवर्ती पहाड़ी क्षेत्रों) के लिए किया गया है।
        इसकी बौनी बढ़वार, गुलाबी रंग के फल तथा औसत उपज 238 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है।
        पालम प्राईड
        इस किस्म का प्रदेश के अत्याधिक जीवाणु मुरझान रोग प्रभावित क्षेत्रों (निचले एवं मध्यवर्ती पहाड़ी क्षेत्रों) के लिए अनुमोदन किया गया है।
        ऊंची बढ़वार तथा रोपाई के चार सप्ताह बाद पौधों को ऊपर से काट दें।
        उपज लगभग 237 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है।
        सोलन लालिमा
        ऊँची बढ़वार वाली सामान्य किस्म, फल लगभग गोलाकार लाल रंग के, कुल घुलनशील पदार्थ 4.40 ब्रिक्स, 70 से 75 दिनों में तैयार, औसतन उपज 650 से 700 क्विंटल प्रति हेक्टेयर।
        सभी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त किस्म।
        हिम प्रगति
        ऊंचे शुष्क शीतोष्ण क्षेत्र (लाहौल घाटी) के लिए नई किस्म, पौधे नियमित ऊँचाई वाले, बहुफलदायक, फल गहरे लाल रंग के, मध्यम नाशपती आकार के फल, गुच्छों में, विधायन के लिए उपयुक्त किस्म, मोटा छिलका होने के कारण अधिक दूरस्थ क्षेत्रों के लिए परिवहनीय, ठण्ड प्रतिरोधि तथा अगेती किस्म, 85 दिन में पक कर तैयार, पैदावार रोमा किस्म से 46 प्रतिशत अधिक।
        पालम टोमेटो हाईब्रिड-1
        इसके पौधे ऊँचे कद वाले तथा फल गहरे लाल रंग के होते हैं।
        एक फल का औसतन भार लगभग 60-70 ग्राम होता है और पोलिहाउस में यह किस्म लगभग 3.5 कि. ग्रा. प्रति पौधा उपज देती है।
        यह किस्म जीवाणु मुर्झान रोग के लिए प्रतिरोधी है तथा पोलिहाउस की खेती के लिए उपयुक्त है।
        हिम पालम टमाटर हाइब्रिड 2 (डी.पी.टी.एच.-1)
        यह किस्म हिमाचल प्रदेश के निम्न और मध्य पर्वतीय परिस्थितियों के बैक्टीरियल विल्ट प्रभाबित क्षेत्रों में उगाने के लिए अनुमोदित की गई है।
        इसकी औसतन 95 सेंटीमीटर की ऊँचाई होती है, जो बरसात के मौसम में उगाने के लिए उपयुक्त है।
        यह एक मध्यम परिपक्व संकर किस्म है जो रोपाई के 70-75 दिनों के बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
        फलों का औसत वजन लगभग 60-70 ग्राम प्रति फल है, प्रति पौधे 15 से 18 विपणन योग्य फल तथा फल का आकार गोल है।
        सस्य कियाएं

        विधि-I: खेत की जुताई भली प्रकार करें। गोबर की खाद व सुपरफास्फेट की सारी मात्रा, म्यूरेट ऑफ पोटाश की आधी तथा यूरिया खाद की एक-तिहाई मात्रा खेत तैयार करते समय डालें। यूरिया खाद की एक-तिहाई मात्रा रोपाई के एक महीने बाद तथा शेष एक तिहाई मात्रा इसके एक महीने बाद डालें। म्यूरेट ऑफ पोटाश की शेष आधी मात्रा फल बनने के समय दें।

        विधि-2: गोबर की खाद, 12:32:16 मिश्रित खाद व सुपर फासफेट की सारी मात्रा व 26 कि.ग्रा. यूरिया खेत तैयार करते समय डालें। शेष यूरिया खाद को दो बराबर हिस्सों में 73 कि.ग्रा. + 73 कि.ग्रा./है., एक निराई-गुडाई के समय तथा दूसरी फूल आने के समय डालें। उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में यूरिया 272 कि. ग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करें। अन्य खादों की मात्रा तथा खेत में डालने की विधि दूसरे क्षेत्रों की तरह ही प्रयोग में लायें।

        वर्षा ऋतु में यूरिया (100-150 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) का घोल बनाकर छिडकाव करें जिससे नत्रजन की कमी नहीं रहेगी और फल पकने में सहायता मिलेगी। फल व बीज की अधिक उपज लेने के लिए 20 कि. ग्रा. बोरेक्स व 10 कि. ग्रा. कैल्शियम कार्बोनेट का मिश्रण प्रति हैक्टेयर डालें।

        जल-प्रबंधन

        मध्यवर्ती क्षेत्रों में मई-जून के महीनों में पौधों को टिकाने के लिए प्रति पौध आधा लीटर पानी प्रतिदिन दें जब तक बरसात न लग पड़े। बरसात का मौसम समाप्त होने के बाद 10 दिन के अन्तर पर सिंचाई करें।

        तुड़ाई एवं उपज

        टमाटर के फलों की तुड़ाई इस बात पर निर्भर करती है कि उपज को मण्डीकरण के लिए कितनी दूर ले जाना है। सामान्यतः फलों को हरी परिपक्य या ब्रेकर अवस्था (फसल के निचले भाग के लगभग एक चौथाई हिस्से में गुलाबी रंग का उभरना) पर तोड़कर उपयुक्त मंडी में भेज दें। टमाटर की औसत उपज इस प्रकार है

        किस्में

        प्रति हैक्टेयर

        प्रति बीघा

        प्रति कनाल

        सामान्य किस्में (क्विंटल)

        300-400

        24-32

        12-16

        संकर किस्में (क्विंटल)

        450-500

        36-40

        18-20

        पॉलीहाऊस में टमाटर उत्पादन

        किस्में :

        1. आर्मशा (सेन्चूरी सीड)
        2. नवीन 2000+ (इंडो अमेरिकन)
        3. बी. एस. एस.-366 (बीजो शीतल) चेरी टाईप

        पौधे रोपाई का समय: फरवरी व जुलाई-अगस्त

        खाद व उर्वरक: भूमि मिश्रण में रोपाई से पहले 100 कि. ग्रा. है. की दर से नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश मिलाएं।

        फर्टिगेशन (सिंचाई के साथ खाद): पानी में घुलनशील मिश्रित खाद या उर्वरक (एन.पी. के 19:19:19) 200 कि.ग्रा. प्रति है. की दर से सप्ताह में सिंचाई के साथ प्रयोग करें। फर्टिगेशन रोपाई के तीसरे सप्ताह से शुरू करें व अन्तिम तुड़ाई से 15 दिन पहले बंद कर दें।

        टमाटर का वक आई रॉट तथा आल्टरनेरिया झुलसा रोग

        झुलसा रोग की रोकथाम हेतु पौधों पर मेन्कोज़ेब एफ पी (युरोफिल एन टी) @ 0.25 प्रतिशत की दर से 10 दिन के अन्तराल पर बिमारी के लक्षण दिखते ही छिड़काव करें। सम्पूर्ण रोकथाम के लिये 14 छिड़काव की आवश्यकता पड़ती है।

        बीज उत्पादन

        टमाटर स्वपरागित फसल है। सामान्य (शुद्ध वंश क्रम) प्रजातियों का बीज किसान स्वयं तैयार कर सकते हैं परन्तु संकर प्रजाति का बीज हर वर्ष नया ही लें।

        बीजोत्पादन के लिए फसल को मंडीकरण वाली फसल की तरह ही लगाया जाता है परन्तु फलों को पूर्णतयः पकने पर ही तोड़ते हैं।

        जिस प्रजाति का प्रमाणित बीज पैदा करना हो, उसे अन्य प्रजातियों से कम से कम 25 मीटर की दूरी पर लगायें। फसल का निरीक्षण फूल आने से पूर्व, फूल व फल बनते समय और फल पकने पर अवश्य करें ताकि अवांछनीय (ऑफ टाईप) पौधों व फलों को अलग किया जा सके।

        शुद्ध, रोगमुक्त व उत्तम फलों का गूदा बीज सहित निकाल कर प्लास्टिक के बर्तन में रख कर मसला जाता है। एक या दो दिन बाद बीज को गुदे से अलग कर दें। साफ पानी में अच्छी तरह धोकर छाया या हल्की धूप में सुखा लें। लगभग 125 किलोग्राम पके हुए गोलाकार फलों से एक किलोग्राम बीज की प्राप्ति होती है। नाशपाती आकार वाले फलों में बीज की मात्रा कुछ कम होती है।

        बीज उपजः

        किस्में

        प्रति हैक्टेयर

        प्रति बीघा

        प्रति कनाल

        गोल फल वाली किस्में (कि.ग्रा.)

        125-150

        10-12

        6-8

        नाशपाती आकार के फल वाली किस्में (कि.ग्रा.)

        75-100

        5-6

        3-4

        दैहिक विकार

        विकार

        कारण व लक्षण

        उपचार

        ब्लॉची राईपनिंग, वेस्कूलर ब्राऊनिंग, व्हाइट वाल, ग्रे वाल

        पोटाशियम और मैग्निशियम की कमी के कारण विकार के नाम के अनुसार ही लक्षण प्रकट होते है।

        पोटाशियम सल्फेट का घोल (0. 2%) तथा मैग्निशियम सल्फेट का घोल (1%) पत्तों पर छिड़के ।

        फलों का फटना

        बोरोन और कैल्शियम की कमी के कारण फलों पर दरारे पड़ जाती हैं।

        पौध और पौधों पर 0.3 से 0.4% बोरैक्स के घोल का छिड़काव करें। भूमि में 20 किलोग्राम बोरैक्स प्रति हैक्टेयर डालें। चूने को अनुमोदित मात्रा में डालें या 0.5% कैल्शियम क्लोराईड के घोल का छिड़काव फल बनने पर करें।

        ब्लासम एंड राट (कैल्शियम के अभाव के कारण)

        हरे फल पर पीले धब्बे उभर आते हैं जो नीचे से आगे बढ़ते है तथा प्रभावित भाग धंस जाते है और गहरे रंग के हो जाते है। नत्रजन की अधिकता से भी ऐसा हो सकता है।

        0.5 प्रतिशत कैल्शियम क्लोराईड के घोल का फल बनने पर छिड़काव करें।

        कैट फेस

        फलों के निचले भाग में धारियां उपरोक्त या नालियां बन जाती हैं जिससे फल मण्डीकरण योग्य नहीं रहते हैं।

        उपरोक्त

        पौध संरक्षण (बीमारियां)

        लक्षण/आकमण

        उपचार

        पौध का कमरतोड़: बीज से पौधा पैदा होते ही मुरझा जाता है। प्रभावित पौधा जमीन पर गिर जाता है।

        1. क्यारियों को फार्मलीन (एक लीटर फार्मलीन प्रति 7-10 लीटर पानी) से रोपाई के 15-20 दिन पहले शोधित करें। बीज तभी बोयें जब मिट्टी से फार्मलिन की गन्ध आनी बन्द हो जाए।

        2. क्यारियों को मैनकोजैब (25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) कार्वैण्डाजिम (5 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) के घोल से रोग के लक्षण देखते ही सीचें।

        वक आई रॉटः प्रभावित हरे फलों के ऊपर हल्के और गहरे भूरे रंग के धब्बे चक्कर के रूप में दिखाई देने लगते हैं।

        1. रोगरोधी किस्म लगाएं ।

        2. पौधों को सहारा देकर सीधा खड़ा रखें। उनके निचले फैलाव में 30-45 सें.मी. ऊंचाई तक के पत्ते मौनसून के आरम्भ होते ही तोड़ दें।

        3. सड़े फलों को नष्ट कर दें ।

        4. जल निकासी का उचित प्रबन्ध रखें।

        5. फसल पर रिडोमिल एम. जैड (25 ग्रा. प्रति 10 लीटर पानी) का छिड़काव करने के 10-15 दिनों के बाद मैनकोजेब (75 डब्ल्यु पी.) इंडोफिल एम. -45 (25 ग्रा. प्रति 10 लीटर पानी) या बोर्डो मिश्रण (80 ग्राम नीला थोथा, 80 ग्राम अनबुझा चूना तथा 10 लीटर पानी) का छिड़काव करें।

        आल्टरनेरिया झुलसा रोग पत्तों पर गहरे भूरे धब्बे चक्कर बनाते हुए उभर आते हैं जो पत्तों पर पीलापन लाते हैं। फलों पर भी ऐसे लक्षण आ जाते हैं।

        1.      बीज रोगमुक्त फल से ही लें।

        2.      बीज का उपचार थीरम-75 डब्ल्यू पी (3 ग्राम प्रति किलोग्राम) से करें।

        3.      पौधों पर 8 से 10 दिन के अन्तराल पर हैक्साकैप (20 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) या कॉपर आक्सीक्लोराईड (बलाईटॉक्स) (30 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) या मैन्कोज़ैब (इंडोफिल एम-45) (25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) का छिड़काव करें।

        4.      पौधों पर मैन्कोज़ेब एफ पी (यूरोफिल एन टी) 0. 55 प्रतिशत की दर से 15 दिन के अन्तराल पर बिमारी के लक्षण आते ही छिड़काव करें। सम्पूर्ण रोकथाम के लिए 4 छिड़काव की जरूरत पड़ती है।

        पत्तों पर सैपटोरिया फफूंद के धब्बे, बकाई व आल्टरनेरिया फल सड़न

        1. फसल पर मैन्कोज़ेब 75 डब्ल्यू.पी. (25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) के 3-4 छिड़काव करें। मैन्कोज़ैब 75 डब्ल्यू.पी. और कॉपर ऑक्सीक्लोराइड़ का बारी-बारी से छिड़काव करें।

        2. फसल पर बेलीटॉन (5 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) या इण्डोफिल एम-45 (25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) + बैनफिल (5 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) या बैयनेट (1 ग्राम प्रति 1 लीटर पानी) या साफ / काम्पैनियन (2 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) या इण्डोफिल एम-45 (25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) का 15 दिन के अन्तराल पर तीन बार छिड़काव करें।

        पत्तों के अन्य फफूंदी रोग: पत्तों पर विभिन्न प्रकार के धब्बे बनते हैं और पत्ते झड़ जाते हैं। अधिक प्रकोप से पौधे के सारे ही पत्ते झड जाते हैं।

        1. स्वस्थ फल और स्वस्थ पौधे से ही बीज लें । 2. पौधों पर 8 से 10 दिन के अन्तराल पर मैनकोजैव (इंडोफिल एम-45) या हैक्साकैप (25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) या बोर्डो मिश्रण (80 ग्राम नीला थोथा, 80 ग्राम चूना तथा 10 ली. पानी) का छिड़काव करें।

        बैक्टीरियल विल्ट पौधे किसी भी अवस्था में मुरझा जाते हैं।

        1. तीन वर्षीय फसल चक्र अपनाएं, जिसमें टमाटर प्रजाति (टमाटर, बैंगन, मिर्च अथवा शिमला मिर्च) की फसल न हों।

        2. रोग मुक्त तथा स्वस्थ पौध का ही रोपण करें।

        3. रोग प्रतिरोधी किस्में ही लगाएं।

        बैक्टीरियल कैंकर निचले फैलाव के पत्ते मुरझा जाते हैं। तने पर भूरे रंग की धारियां और फलों पर सफेद रंग से घिरे छोटे भूरे धब्बे दिखाई देते है।

        1. रोग मुक्त स्वस्थ पौध लगाए।

        2. रोगी पौधे उखाड़ कर नष्ट कर दें।

        3. तीन वर्षीय फसल चक्र अपनाएं और ऐसी फसल उगांए जिस पर इस रोग का प्रभाव न हो।

        टमाटर का शू स्ट्रिंग रोगः पत्तियां विशेष आकार में मौजेक नमूने बनाती हैं तथा नीचे को मुड़ने लगती हैं। पत्तों के अग्रभाग तन्तु जैसे हो जाते हैं। रोगग्रस्त पौध पर देरी से फूल आता है तथा फल छोटे रह जाते हैं।

        1. रोग प्रतिरोधी किस्में जैसे एस. 12 लगायें।

        2. रोग को आश्रय देने वाले खरपतवार जैसे धतूरा तथा मको को निकाल दें।

        3. मैलाथियान 50 ई.सी. (20 मिली प्रति 10 लीटर पानी) के घोल का छिड़काव तेला का नियन्त्रण करने के लिए करें जिससे यह बीमारी फैलती है।

        चूर्णलासिता रोगः फफूंद के कारण पत्तों के ऊपर के हिस्से पर धब्बे पड़ जाते हैं। पहले यह हल्के रहते हैं पर बाद में बीमारी बढ़ने पर एकत्रित होकर बड़े बन जाते हैं। प्रभावित पौधे पीले पड़कर मरने लगते हैं।

        पौधों में बीमारी के लक्षण आते ही हैगजाकोनेजोल (5 मिली प्रति लीटर पानी) से छिड़काव करें। इसके पश्चात् डाईनोकैप (10 ग्राम प्रति लीटर पानी) से छिड़काव करें। दस दिन के अन्तराल पर एक अन्य छिड़काव फिर करें।

        फफूंद रोग के उपचार हेतु संयुक्त छिड़काव सारणी:

        क) बिजाई से पूर्व

        1. क्यारियों को बिजाई से 20 दिन पूर्व फॉर्मालीन 1 लीटर प्रति 7-10 लीटर पानी से शोधित करें।

        2. बीज स्वस्थ फलों से लें।

        3. बीज को थीरम 75 डब्ल्यु पी या हैक्साकैप 75 डब्ल्यु पी (3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज) से उपचार करें।

        ख) रोपाई के समय

        1. निरोग पौध का रोपण करें।

        2. पौधों को सहारा देकर सीधे रखें और नीचे के 15 सैंटीमीटर भाग पर पत्ते न रहने दें।

        ग) रोपाई के बाद और मौनसून से पूर्व

        पौधों पर मैन्कोज़ैब (इंडोफिल एम-45) (25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) या बोर्डो मिश्रण (80 ग्राम चूना, 80 ग्राम नीला थोथा और 10 लीटर पानी) या ब्लाईटॉक्स-50 या फाईटोलान (30 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) का छिडकाव करें।

        घ) फल आने पर

        1. प्रभावित पौधों व फलों को नष्ट कर दें। पौधों पर रिडोमिल एम जैड (25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) 10-15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करने के बाद कॉपर आक्सीक्लोराईड या ब्लाईटाक्स-50 (30 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) या मैन्कोजेब (इंडोफिल एम-45) (25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) का छिड़काव करें ।

        2. पौधों में फल तोड़ने से 8 दिन पूर्व अगर कम्पेनियन (कार्बेण्डाजिम + मैन्कोजैब) (25 ग्राम प्रति लीटर पानी) का एक छिड़काव किया जाए तो तोड़ने के पश्चात् फफूंदों द्वारा बिमारियों को नियन्त्रण में रखा जा सकता है और फल स्वस्थ रहते हैं।

        पौध संरक्षण (कीट)
        लक्षण/आकमण
        उपचार
        फल छेदक: इसकी सुंडियाँ कोमल पत्तियों पर पलती है और बाद में छेद करके फल के अन्दर पलने लगती है। 80 मि.ली. लैम्डासाईहेलोथरिन (कराटे 5 ई.सी.) को 100 लीटर पानी में घोलकर फूल आने के समय छिड़काव करें।
        फल मक्खी: यह फल में अण्डे देती है और फिर इसका प्रकोप फल के अन्दर फैल जाता है और फल खाने योग्य नहीं रहते।

        मई-जून में जब कीट के प्रौढ़ फसल पर दिखाई देने लगें तभी उन्हें आकर्षित करने हेतु, 50 ग्रा. खांड/गुड़ और मैलाथियान 10 मि.ली. (साईथियान / मैलाथियान 50 ई.सी.) 5 लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करें। पालम ट्रैप का प्रयोग करें (प्रति वीघा 2 ट्रैप)

        सावधनियाँ:

        1. पौधों पर छिड़काव करने के 15 दिन बाद फल तोड़ें।
        2. रोगग्रस्त फल एकत्र करके मिट्टी में दबा दें या किसी ऊपर बताए गए कीटनाशी रसायन द्वारा नष्ट कर दें।
        कटुआ कीड़ा: गंदी भूरी सुण्डियां भूमि में छिपी रहती है और रोपण के समय से ही पौध के कोमल तने को रात के समय मिट्टी की धरातल के बराबर वाले स्थान से काट देती है और इससे फसल को भारी हानि पहुँचती है।
        1. खेत तैयार करते समय 80 मि.ली. क्लोरपाइरिफॉस 20 ई.सी. को 1 किलोग्राम रेत में मिलाकर प्रति कनाल में अच्छी तरह मिला दें।
        2. पूर्णतयः गली सड़ी गोबर की खाद का ही प्रयोग करें।
        जड़-गाँठ सूत्रकृमि (रूट नॉट निमाटोड): ये सूक्ष्म-दर्शी जीव मिट्टी के अन्दर रहते है। इसके प्रकोप से जडों में गाँठें बन जाती हैं। पौधे के ऊपरी भाग पीले पड़ कर मुरझा जाते हैं तथा पौधे की बढौतरी रूक जाती है। खेतों के कई टुकड़ों में इसका प्रकोप देखा जाता हैं। अधिक प्रभावित फसल व पत्तों का मुड़ना और दिन में अस्थाई तौर पर मुरझाना मुख्य लक्षण है।
        1. सूत्रकृमि से रोगग्रस्त खेतों में टमाटर और इसके वंश के अन्य पौधे जैसे शिमला मिर्च, लाल मिर्च, बैंगन और आलू आदि एक फसल लेने के बाद तुरन्त दूसरी फसल न लें।
        2. खेत में फेरबदल के लिए अनाज वाली फसलें उगायें।
        3. रोगग्रस्त क्षेत्रों में 2-3 वर्ष के लिए सूत्रकृमि प्रतिरोधी किस्में जैसे कि एस-120 लगाये।
        4. सूत्रकृमि रहित पौधशाला से ही पौध लें तथा प्रति वर्ष पौधशाला का स्थान बदलें।
        5. ग्रसित खेतों को 2.2 कि. ग्रा. फोरेट (थीमेट 10 जी) के दाने प्रति कनाल के हिसाब से डालें।